जैसाकि अगले श्लोक में अधिक स्पष्ट रूप से बतलाया जायेगा, अल्पज्ञ को भगवान् की शक्ति इस तरह मोहित करती है कि वह ब्रह्माजी को या अन्य किसी व्यक्ति को परमेश्वर मान बैठता है। किन्तु ब्रह्माजी को ऐसा कहलाना पसन्द नहीं है। वे भगवान् वासुदेव या श्रीकृष्ण को उसी तरह सादर नमस्कार करते हैं जिस तरह उन्होंने ब्रह्म-संहिता (५.१) में उनका अभिवादन किया है— ईश्वर: परम: कृष्ण: सच्चिदानन्दविग्रह:।
अनादिरादिर्गोविन्द: सर्वकारणकारणं ॥
“परमेश्वर तो भगवान् श्रीकृष्ण हैं, जो अपने दिव्य शरीर से आदि भगवान् हैं और समस्त कारणों के परम कारण हैं। मैं उन आदि भगवान् गोविन्द की पूजा करता हूँ।”
ब्रह्माजी अपनी असली स्थिति से अवगत हैं और वे जानते हैं कि किस तरह अल्पज्ञानी व्यक्ति भगवान् की भ्रामक शक्ति द्वारा मोहित होकर हर एक को ईश्वर मान लेते हैं। ब्रह्माजी जैसे उत्तरदायी पुरुष अपने शिष्यों या आश्रितों से परमेश्वर कहलाना पसन्द नहीं करते, लेकिन मूर्ख व्यक्ति कुत्तों, शूकरों, ऊँटों तथा घोड़ों जैसे पुरुषों से प्रशंसित होने एवं परमेश्वर के रूप में सम्बोधित किये जाने पर अत्यन्त प्रफुल्लित होते हैं। ऐसे लोग ईश्वर कहलाने या मूर्ख प्रशंसकों द्वारा ईश्वर कहकर पुकारे जाने पर क्यों पुलकित होते हैं इसकी व्याख्या अगले श्लोक में दी गई है।