हे पिता, आप इस व्यक्त जगत के वास्तविक लक्षणों का वर्णन करें। इसका आधार क्या है? यह किस तरह उत्पन्न हुआ? यह किस तरह संस्थित है? और यह सब किसके नियन्त्रण में किया जा रहा है?
तात्पर्य
वास्तविक कारण तथा कार्य के आधार पर नारद मुनि द्वारा उठाये गये प्रश्न अत्यन्त तर्कसंगत प्रतीत होते हैं। किन्तु नास्तिक लोग स्वनिर्मित अनेक सिद्धान्त प्रस्तुत करते रहते हैं जिनमें कारण-कार्य का लेशमात्र भी नहीं रहता। यह व्यक्त जगत तथा आत्मा, अब भी इन ईशविहीन नास्तिकों द्वारा प्रयोगात्मक ज्ञान के आधार पर, अविवेचित है, यद्यपि उन्होंने अपने उर्वर मस्तिष्क द्वारा निर्मित अनेक सिद्धान्त प्रस्तुत किये हैं। किन्तु नारद मुनि ऐसे मानसिक चिन्तनपरक सिद्धान्तों के विपरीत सृष्टि सम्बन्धी सारे तथ्यों को जानने के इच्छुक थे, उन सिद्धान्तों के द्वारा नहीं।
आत्मा तथा परमात्मा सम्बन्धी दिव्य ज्ञान में जगत तथा इसकी सृष्टि की पृष्ट-भूमि का ज्ञान सम्मिलित होता है। व्यवहार-जगत में किसी भी बुद्धिमान व्यक्ति को यथार्थ रुप तीन बातें दिखती हैं— जीव, व्यक्त जगत तथा इनके ऊपर अनन्तिम नियन्त्रण। बुद्धिमान व्यक्ति देख सकता है कि न तो जीव, न ही व्यवहार-जगत संयोगजन्य सृष्टियाँ हैं। सृष्टि एवं इसके नियमनकारी कार्य-कारणों से इसके पीछे किसी बुद्धिमान मस्तिष्क की योजना कार्यशील प्रतीत होती है। शुद्ध जिज्ञासा द्वारा और किसी ऐसे व्यक्ति की सहायता से, जो उन्हें वास्तव में जानता हो, परम कारण को खोजा जा सकता है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.