भूर्लोक:—पाताल से लेकर धरालोक तक के समग्र लोक; कल्पित:—कल्पना पर आधारित; पद्भ्याम्—पाँवों पर स्थित; भुवर्लोक:—भुवर्लोक; अस्य—भगवान् के विश्व-रूप की; नाभित:—नाभि से; स्वर्लोक:—स्वर्गलोक से प्रारम्भ होने वाले ऊर्ध्व लोक; कल्पित:—कल्पना किये गये; मूर्ध्ना—वक्षस्थल से लेकर सिर तक; इति—इस प्रकार; वा—अथवा; लोक— लोक; कल्पना—कल्पना ।.
अनुवाद
अन्य लोग सम्पूर्ण लोकों को तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं। इनके नाम हैं—परम पुरुष के पाँवों पर अधोलोक (पृथ्वी तक), नाभि पर मध्यलोक तथा वक्षस्थल से सिर तक ऊर्ध्व लोक (स्वर्गतक)।
तात्पर्य
यहाँ पर सम्पूर्ण लोकों के तीन विभागों का उल्लेख हुआ है, कुछ लोग लोकों की संख्या चौदह मानते हैं। यहाँ इसकी भी व्याख्या हुई है।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के द्वितीय स्कन्ध के अन्तर्गत “समस्त कारणों के कारण” नामक पाँचवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
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