एतत्—यह सब; मे—मुझको; पृच्छत:—उत्सुक, जिज्ञासु; सर्वम्—जो कुछ पूछा जाता है; सर्व-ज्ञ—सब कुछ जाननेवाला; सकल—सम्पूर्ण; ईश्वर—नियन्ता; विजानीहि—कृपा करके बतायें; यथा—जिस तरह; एव—वे हैं; इदम्—यह; अहम्—मैं; बुध्ये—समझ सकूँ; अनुशासित:—आपसे सीखकर ।.
अनुवाद
हे पिता, आप सब कुछ जाननेवाले हैं और सबों के नियन्ता हैं। अतएव मैंने आपसे जितने सारे प्रश्न किये हैं, उन्हें कृपा करके बताइये, जिससे मैं आपके शिष्य के रूप में उन्हें समझ सकूँ।
तात्पर्य
नारद मुनि द्वारा पूछे गये सारे प्रश्न सबों के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। अतएव उन्होंने ब्रह्माजी से प्रार्थना की कि वे इन्हें उपयुक्त समझें, जिससे ब्रह्म-सम्प्रदाय की परम्परा के अन्य सभी लोग बिना कठिनाई के उन्हें समझ सकें।
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