श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 5: समस्त कारणों के कारण  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  2.5.9 
ब्रह्मोवाच
सम्यक् कारुणिकस्येदं वत्स ते विचिकित्सितम् ।
यदहं चोदित: सौम्य भगवद्वीर्यदर्शने ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
ब्रह्मा उवाच—ब्रह्माजी ने कहा; सम्यक्—ठीक ढंग से; कारुणिकस्य—आपका, जो अत्यन्त दयालु हैं; इदम्—यह; वत्स—मेरे बच्चे; ते—तुम्हारी; विचिकित्सितम्—जिज्ञासा; यत्—जिससे; अहम्—मैं; चोदित:—प्रेरित; सौम्य—हे भद्र; भगवत्—भगवान् का; वीर्य—पराक्रम के; दर्शने—सम्बन्ध में, विषयक ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्माजी ने कहा : हे मेरे वत्स नारद, तुमने सबों पर (मुझ सहित) करुणा करके ही ये सारे प्रश्न पूछे हैं, क्योंकि इनसे मैं भगवान् के पराक्रम को बारीकी से देखने के लिए प्रेरित हुआ हूँ।
 
तात्पर्य
 नारद जी द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर ब्रह्माजी ने उनको बधाई दी, क्योंकि जब भी भक्तों से भगवान् के विषय में प्रश्न पूछे जाते हैं, तो वे अत्यन्त प्रफुल्लित हो उठते हैं। यह भगवान् के शुद्ध भक्त का लक्षण है। भगवान् के दिव्य कार्यकलापों से सम्बन्धित ऐसी वार्ताओं से वह वायुमण्डल शुद्ध हो जाता है, जिसमें ये वार्ताएँ होती हैं और ऐसे प्रश्नों का उत्तर देते समय भक्तगण जीवन्त हो उठते हैं। यह प्रश्नकर्ता तथा उत्तरदाता दोनों को ही शुद्ध करनेवाला है। शुद्ध भक्त भगवान् के विषय में प्रत्येक वस्तु जानकर न केवल तुष्ट होते हैं, अपितु वे इस जानकारी को अन्यों तक प्रसारित करना चाहते हैं, क्योंकि वे यह देखना चाहते हैं कि भगवान् का यश प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञात हो। अतएव जब उन्हें ऐसा अवसर प्रदान किया जाता है, तो वे अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। धर्मोपदेश-कार्यों का यही मूल सिद्धान्त है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥