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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 6: पुरुष सूक्त की पुष्टि  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  2.6.11 
अव्यक्तरससिन्धूनां भूतानां निधनस्य च ।
उदरं विदितं पुंसो हृदयं मनस: पदम् ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
अव्यक्त—निर्विशेष स्वरूप; रस-सिन्धूनाम्—जल के सागरों का; भूतानाम्—भौतिक जगत में जन्म लेने वालों का; निधनस्य— संहार का; —भी; उदरम्—उसका पेट; विदितम्—बुद्धिमान लोगों द्वारा ज्ञेय; पुंस:—महापुरुष का; हृदयम्—हृदय; मनस:—सूक्ष्म शरीर का; पदम्—स्थान, पद ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् का निराकार स्वरूप महासागरों का धाम है और उनका उदर भौतिक दृष्टि से विनष्ट जीवों का आश्रय है। उनका हृदय जीवों के सूक्ष्म भौतिक शरीरों का धाम है। बुद्धिमान लोग इसे इस प्रकार से जानते हैं।
 
तात्पर्य
 भगवद्गीता (८.१७-१८) में कहा गया है कि मनुष्यों की गणना के अनुसार ब्रह्मा का एक दिन चारों युगों के एक हजार युगों के तुल्य (प्रत्येक ४३००००० वर्ष) होता है और ब्रह्मा की रात भी इतनी ही बड़ी होती है। ब्रह्मा ऐसे सौ वर्षों तक जीवित रहते हैं और तब उनकी मृत्यु हो जाती है। ब्रह्मा, जो सामान्यतया भगवान् के बहुत बड़े भक्त हैं, अपनी मृत्यु के बाद ही मुक्ति प्राप्त करते हैं। इस प्रकार ब्रह्माण्ड (ब्रह्माजी द्वारा नियंत्रित फुटबाल जैसा गोलाकार पिण्ड) का संहार हो जाता है और किसी लोक-विशेष के या कि पूरे ब्रह्माण्ड के निवासी भी विनष्ट हो जाते हैं। इस श्लोक में उल्लिखित अव्यक्त शब्द का अर्थ ब्रह्मा की रात है जब आंशिक प्रलय होती है और उस विशेष ब्रह्माण्ड के जीव, यहाँ तक कि ब्रह्मलोक बड़े-बड़े समुद्रों आदि सहित, विराट पुरुष के उदर में आश्रय ग्रहण करते हैं। ब्रह्मा की रात बीतने पर पुन: सृष्टि होती है और भगवान् के उदर में स्थित सारे जीव अपनी-अपनी भूमिका निभाने के लिए छोड़ दिए जाते हैं मानो वे गहरी निद्रा से जगे हों। चूँकि जीव कभी नष्ट नहीं होते, अतएव भौतिक जगत का संहार होने पर जीवों का अस्तित्व नहीं मिटता, लेकिन जब तक मुक्ति प्राप्त नहीं होती, तब तक जीव को एक शरीर त्याग कर पुन: पुन: दूसरा शरीर धारण करना होता है। यह मनुष्य-जीवन शरीर के बारम्बार परिवर्तन का समाधान निकालने के लिए होता है, जिसके फलस्वरूप चिदाकाश में स्थान प्राप्त हो सके जहाँ प्रत्येक वस्तु सच्चिदानन्द स्वरूप है। दूसरे शब्दों में, जीवों के सूक्ष्म रूप परम पुरुष के हृदय में रहते हैं और सृष्टि के समय वे आकार ग्रहण कर लेते हैं।
 
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