श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 6: पुरुष सूक्त की पुष्टि  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  2.6.12 
धर्मस्य मम तुभ्यं च कुमाराणां भवस्य च ।
विज्ञानस्य च सत्त्वस्य परस्यात्मा परायणम् ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
धर्मस्य—धार्मिक नियमों का या यमराज का; मम—मेरा; तुभ्यम्—तुम्हारा; च—तथा; कुमाराणाम्—चारों कुमारों का; भवस्य—शिवजी का; च—तथा; विज्ञानस्य—दिव्य ज्ञान का; च—भी; सत्त्वस्य—सत्य का; परस्य—महापुरुष की; आत्मा— चेतना; परायणम्—आश्रित ।.
 
अनुवाद
 
 तथापि उस महापुरुष की चेतना धार्मिक सिद्धान्तों का, मेरा, तुम्हारा तथा चारों कुमारों— सनक, सनातन, सनत्कुमार तथा सनन्दन—का निवास-स्थान है। यही चेतना सत्य तथा दिव्य ज्ञान का वास-स्थान है।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥