सर्वासूनां च वायोश्च तन्नासे परमायणे ।
अश्विनोरोषधीनां च घ्राणो मोदप्रमोदयो: ॥ २ ॥
शब्दार्थ
सर्व—सभी; असूनाम्—विभिन्न प्रकार की प्राणवायु; च—तथा; वायो:—वायु का; च—भी; तत्—उसकी; नासे—नाक में; परम-आयणे—दिव्य जनन-बिन्दु में; अश्विनो:—अश्विनीकुमार देवताओं का; ओषधीनाम्—समस्त जड़ी-बूटियों का; च—भी; घ्राण:—घ्राण-शक्ति; मोद—आनन्द; प्रमोदयो:—विशिष्ट खेल ।.
अनुवाद
उनके दोनों नथुने हमारे श्वास के तथा अन्य सभी प्रकार के वायु के जनन-केन्द्र हैं; उनकी घ्राण शक्ति से अश्विनीकुमार तथा समस्त प्रकार की जड़ी-बूटियाँ उत्पन्न होती हैं और उनकी श्वास-शक्ति से विभिन्न प्रकार की सुगन्धियाँ उत्पन्न होती हैं।
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