श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 6: पुरुष सूक्त की पुष्टि  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  2.6.26 
नामधेयानि मन्त्राश्च दक्षिणाश्च व्रतानि च ।
देवतानुक्रम: कल्प: सङ्कल्पस्तन्त्रमेव च ॥ २६ ॥
 
शब्दार्थ
नाम-धेयानि—देवाताओं के नामों का आवाहन; मन्त्रा:—देवता-विशेष को अर्पित किये जानेवाले विशिष्ट मन्त्र; च—भी; दक्षिणा:—पुरस्कार; च—तथा; व्रतानि—व्रत; च—तथा; देवता-अनुक्रम:—एक-एक करके सारे देवता; कल्प:—विशिष्ट शास्त्र; सङ्कल्प:—विशिष्ट प्रयोजन; तन्त्रम्—विशिष्ट विधि; एव—वे जैसी हैं; च—भी ।.
 
अनुवाद
 
 यज्ञ की अन्य आवश्यकताओं में देवताओं का विभिन्न नामों से विशिष्ट मंत्रों तथा दक्षिणा के व्रतों द्वारा आवाहन सम्मिलित हैं। ये आवाहन विशिष्ट प्रयोजनों से तथा विशिष्ट विधियों द्वारा विशेष शास्त्र के अनुसार होने चाहिए।
 
तात्पर्य
 यज्ञ करने की पूरी विधि सकाम कर्म के अन्तर्गत आती है और ऐसे कार्य-कलाप अत्यन्त वैज्ञानिक होते हैं। इनमें विशेष स्वर के साथ शब्दोच्चारण करना होता है। यह एक महान् विज्ञान है, किन्तु चार हजार वर्षों से काम में न लाये जाने तथा योग्य ब्राह्मणों के अभाव के कारण ऐसे कृत्य अब प्रभावपूर्ण नहीं रह गये। न ही इस पतित काल में इनकी संस्तुति की जाती है। इस युग में प्रदर्शन के रूप में किया जानेवाला ऐसा यज्ञ चालक पुरोहितों द्वारा मात्र ठगी का कार्य है। अतएव यज्ञों का ऐसा दिखावा कभी भी प्रभावशाली नहीं हो सकता। सकाम कर्म भौतिक विज्ञान द्वारा और कुछ हद तक स्थूल भौतिक सहायता द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं, किन्तु भौतिकतावादी लोग शब्दोच्चारण की विधि में सूक्ष्मतर प्रगति चाहते हैं, जिस पर वैदिक मन्त्रों की स्थापना हुई है। स्थूल भौतिक विज्ञान मानव जीवन के वास्तविक उद्देश्य को नहीं बदल सकता। हाँ, वे जीवन की समस्याओं को हल किये बिना कृत्रिम आवश्यकताओं में वृद्धि अवश्य कर सकते हैं, फलत: भौतिकतावादी जीवन-शैली त्रुटिपूर्ण मानव सभ्यता की ओर ले जाती है। चूँकि जीवन का परम उद्देश्य आध्यात्मिक अनुभूति है, अतएव जैसाकि ऊपर कहा जा चुका है, भगवान् चैतन्य ने भगवान् के पवित्र नाम के आवाहन की प्रत्यक्ष विधि की संस्तुति की है। आधुनिक युग के लोग इस सरल विधि का लाभ उठा सकते हैं, क्योंकि यह जटिल सामाजिक संरचना की परिस्थिति में अपनाए जाने योग्य है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥