श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 6: पुरुष सूक्त की पुष्टि  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  2.6.8 
अपां वीर्यस्य सर्गस्य पर्जन्यस्य प्रजापते: ।
पुंस: शिश्न उपस्थस्तु प्रजात्यानन्दनिर्वृते: ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
अपाम्—जल का; वीर्यस्य—वीर्य का; सर्गस्य—सृष्टि का; पर्जन्यस्य—वर्षा का; प्रजापते:—स्रष्टा का; पुंस:—भगवान् का; शिश्न:—जननांग; उपस्थ: तु—गुदा-भाग; प्रजाति—जन्म देने के कारण; आनन्द—आनन्द के; निर्वृते:—कारण ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् के जननांगों से जल, वीर्य, सृष्टि, वर्षा तथा प्रजापतियों का जन्म होता है। उनके जननांग उस आनन्द के कारण-स्वरूप हैं, जिससे जनन के कष्ट का प्रतिकार किया जा सकता है।
 
तात्पर्य
 जननांग तथा जनन का सुख पारिवारिक भार के कष्टों को संतुलित करता रहता है। यदि भगवत्कृपा से जननांगों के ऊपर एक आनन्द-प्रदायक वस्तु का आवरण न हो, तो जनन-क्रिया बन्द हो जाय। यह वस्तु इतना प्रखर आनन्द प्रदान करती है कि इससे पारिवारिक भार का कष्ट भूल जाता है। पुरुष इस आनन्दायक वस्तु से इतना मोहित हो जाता है कि वह एक ही सन्तान को जन्म देकर सन्तुष्ट नहीं होता, अपितु सन्तानों की संख्या बढ़ाता जाता है और इस आनन्दादायक वस्तु के कारण ही उनके पालन-पोषण में कठिनाई उठाने की झंझट अपने सिर पर ले लेता है। किन्तु यह आनन्ददायक वस्तु मिथ्या नहीं होती, क्योंकि यह भगवान् के दिव्य शरीर से निकलती है। दूसरे शब्दों में, आनन्दप्रदायक वस्तु वास्तविकता है, लेकिन भौतिक संसर्ग के कारण इसने भौतिक कल्मष ग्रहण कर लीया है। भौतिक जगत में, भौतिक संसर्ग के कारण विषयी जीवन अनेक दुखों का कारण बनता है। अतएव भौतिक जगत में ऐसे जीवन को आवश्यकता से अधिक प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए। भौतिक जगत में भी सन्तान उत्पन्न करने की आवश्यकता है, लेकिन सन्तानोत्पत्ति का कार्य आध्यात्मिक मूल्यों का पूर्ण उत्तरदायित्व निभाते हुए करना होगा। जीवन के आध्यात्मिक मूल्यों को भौतिक जगत में मानव रूप में ही साकार बनाया जा सकता है और मनुष्य को आध्यात्मिक मूल्यों के प्रसंग में ही परिवार-नियोजन करना चाहिए, अन्यथा नहीं। संतति-निरोधक के उपयोग के द्वारा परिवार-नियोजन अत्यन्त घृणित है और भौतिक संदूषण का अत्यन्त स्थूल रूप है। जो भौतिकतावादी इन उपायों का उपयोग करते हैं, वे कृत्रिम विधियों द्वारा जननांग के ऊपर आवरण की आनन्द-शक्ति का पूरा-पूरा उपयोग करना चाहते हैं और इसके आध्यात्मिक महत्त्व को नहीं जानते। और आध्यात्मिक मूल्यों के ज्ञान के बिना, कम बुद्धिमान व्यक्ति जननांगों का उपयोग केवल भौतिक इन्द्रिय आनन्द के लिए करना चाहता है।
 
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