पायु:—गुदा; यमस्य—मृत्यु का नियामक देव; मित्रस्य—मित्र का; परिमोक्षस्य—मलद्वार का; नारद—हे नारद; हिंसाया:— ईर्ष्या का; निर्ऋते:—दुर्भाग्य का; मृत्यो:—मृत्यु का; निरयस्य—नरक का; गुदम्—गुदा; स्मृत:—समझा जाता है ।.
अनुवाद
हे नारद, भगवान् के विराट रूप का गुदाद्वार मृत्यु के नियामक देव, मित्र, का धाम है और भगवान् की बड़ी आँत का छोर ईर्ष्या, दुर्भाग्य, मृत्यु, नरक आदि का स्थान माना जाता है।
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