कल्प के अन्त में भावी वैवस्वत मनु, सत्यव्रत, देखेंगे कि मत्स्य अवतार के रूप में श्रीभगवान् पृथ्वी पर्यन्त सभी प्रकार की जीवात्माओं के आश्रय हैं। तब कल्प के अन्त में, जल में मेरे भय से, सभी वेद मेरे (ब्रह्मा) मुँह से निकलते हैं तथा भगवान् उस प्रवाह जल का राशि आनन्द उठाते हुए वेदों की रक्षा करते हैं।
तात्पर्य
ब्रह्मा का एक दिन चौदह मनुओं के तुल्य है और प्रत्येक मनु के अन्त में पृथ्वी-पर्यन्त सब कुछ नष्ट हो जाता है और तब ब्रह्मा को भी वह जल भयानक लगता है। अत: भावी वैवस्वत मनु के आरम्भ में वह ऐसे संहार को देखेगा। ऐसी अन्य अनेक घटनाएँ होंगी—यथा प्रसिद्ध शंखासुर का वध। ऐसी भविष्यवाणी ब्रह्मा के गत अनुभव पर आधारित है, क्योंकि उन्हें पता था कि उस प्रलयंकारी दृश्य में उनके मुख से वेद प्रकट होंगे, किन्तु मत्स्यावतार रूप में श्रीभगवान् न केवल समस्त जीवात्माओं—यथा देवताओं, पशुओं, मनुष्यों तथा मुनियों—की रक्षा करेंगे वरन् वेदों को भी बचाएँगे।
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