हाथी की पुकार सुनकर श्रीभगवान् को लगा कि उसे उनकी अविलम्ब सहायता की आवश्यकता है, क्योंकि वह घोर संकट में था। तब पक्षिराज गरुड़ के पंखों पर आसीन होकर भगवान् अपने आयुध चक्र से सज्जित होकर वहाँ पर तुरन्त प्रकट हुए। उन्होंने हाथी की रक्षा करने के लिए अपने चक्र से मगर के मुँह के खण्ड-खण्ड कर दिये और हाथी के सूँड़से पकड़ कर उसे बाहर निकाल दिया।
तात्पर्य
श्रीभगवान् वैकुण्ठ लोक में रहते हैं। कोई यह नहीं अनुमान कर सकता कि यह लोक कितनी दूर स्थित है। किन्तु ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई वायुयान से या मन से उस लोक पर पहुँचना चाहे तो लाखों वर्षों तक यात्रा करने पर भी वहाँ नहीं पहुँच सकेगा। आधुनिक विज्ञानियों ने वायुयानों का आविष्कार किया है, किन्तु वे भौतिक हैं जबकि योगी मन रूपी यान से यात्रा करने का प्रयास करते हैं। ये योगी अपने मन-यान से तुरन्त ही कितनी भी दूर पहुँच सकते हैं। किन्तु ईश्वर के राज्य वैकुण्ठ लोक तक न तो वायुयान की, न मन-यान की ही पहुँच है, क्योंकि वह भौतिक आकाश से बहुत परे स्थित है। ऐसी स्थिति में भला हाथी की प्रार्थना उतनी दूर तक कैसे सुन पड़ी और भगवान् तत्क्षण उस स्थान पर कैसे पहुँच गये? मानव कल्पना से इन बातों की गणना सम्भव नहीं। यह सब भगवान् की अनन्त शक्ति से ही सम्भव हो सका, इसीलिए भगवान् को यहाँ अप्रमेय कहा गया है, क्योंकि सर्वाधिक बुद्धिमान मनुष्य का मस्तिष्क भी गणित की गणना से उनकी शक्तियों की कल्पना नहीं कर सकता। भगवान् इतनी दूरी से भी सुन सकते हैं, खा सकते हैं और एक पल के अन्तराल में सभी स्थानों में एकसाथ प्रकट हो सकते हैं। ऐसी है भगवान् की सर्वशक्तिमत्ता।
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