क्षत्रं क्षयाय विधिनोपभृतं महात्मा
ब्रह्मध्रुगुज्झितपथं नरकार्तिलिप्सु ।
उद्धन्त्यसाववनिकण्टकमुग्रवीर्य-
स्त्रि:सप्तकृत्व उरुधारपरश्वधेन ॥ २२ ॥
शब्दार्थ
क्षत्रम्—राजवंश; क्षयाय—घटाने के लिए; विधिना—दैववश; उपभृतम्—बढ़े हुए; महात्मा—परम साधु परशुराम के रूप में भगवान्; ब्रह्म-ध्रुक्—ब्रह्मा का परम सत्य; उज्झित-पथम्—जिन्होंने परम सत्य मार्ग को त्याग दिया है; नरक-आर्ति-लिप्सु— नरक की यातना के इच्छुक; उद्धन्ति—बाध्य करते हैं; असौ—वे सब; अवनिकण्टकम्—संसार के काँटे; उग्र-वीर्य:— महापराक्रमी; त्रि:-सप्त—इक्कीस बार; कृत्व:—सम्पन्न; उरुधार—अत्यन्त तीक्ष्ण; परश्वधेन—विशाल फरसे से ।.
अनुवाद
जब शासक वर्ग जो क्षत्रिय नाम से जाने जाते थे, परम सत्य के पथ से भ्रष्ट हो गये और नरक भोगने के इच्छुक हो उठे, तो भगवान् ने परशुराम मुनि का अवतार लेकर उन अवांछित राजाओं का उच्छेद किया जो पृथ्वी के लिए कंटक बने हुए थे। इस तरह उन्होंने अपने तीक्ष्ण फरसे के द्वारा क्षत्रियों का इक्कीस बार उच्छेदन किया।
तात्पर्य
ब्रह्माण्ड के किसी भी भाग में, चाहे वह इस लोक में हो या अन्य लोकों में, शासन करने वाले क्षत्रिय वास्तव में सर्वशक्तिमान भगवान् के प्रतिनिधि होते हैं और वे प्रजा को भगवत्साक्षात्कार की ओर अभिमुख कराने के निमित्त होते हैं। प्रत्येक राज्य तथा इसके प्रशासक का, चाहे प्रशासन जैसा भी हो—राज्यतंत्र, तानाशाही लोकतंत्र इत्यादि—मुख्य कर्तव्य प्रजा को भगवत्साक्षात्कार की ओर अभिमुख करना है। यह सभी मनुष्यों के लिए अनिवार्य है और पिता, गुरु तथा अन्तत: राज्य का यह कर्तव्य है कि वे प्रजा को इस ओर ले जाँए। भौतिक संसार की सृष्टि इसी उद्देश्य से हुई है कि उन पतित आत्माओं को अवसर प्राप्त हो सके जो भगवान् की इच्छाओं के विरुद्ध कार्य करके प्रकृति द्वारा बद्ध हो गई है। भौतिक प्रकृति की शक्ति मनुष्य को धीरे-धीरे नित्य दुखों तथा कष्टों की नारकीय अवस्था की ओर ले जाती है। जो बद्ध जीवन के निर्धारित विधानों के विपरीत कार्य करते हैं, वे ब्रह्मोज्झित-पथ कहलाते हैं जिसका अर्थ है कि वे परम सत्य के मार्ग का विरोध कर रहे हैं, अत: वे दण्ड के भागी होते हैं। भगवान् परशुराम, जो श्रीभगवान् के अवतार हैं, ऐसी ही सांसारिक परिस्थिति में प्रकट हुए और उन्होंने सभी उत्पाती राजाओं का इक्कीस बार संहार किया। उस समय अनेक क्षत्रिय राजा भाग कर भारतवर्ष से बाहर चले गये और महाभारत साक्षी है कि मिस्र के राजा परशुराम के उत्पीडऩ से ही शुरु-शुरु में भारत से प्रवासी बने। जब भी राजा या प्रशासकगण ईश्वरविहीन बन कर ईश्वरविहीन सभ्यता की व्यवस्था करते हैं तब उन्हें इसी प्रकार सभी परिस्थितियों में दण्डित होना पड़ता है। यही सर्वशक्तिमान की व्यवस्था है।
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