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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 7: विशिष्ट कार्यों के लिए निर्दिष्ट अवतार  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  2.7.23 
अस्मत्प्रसादसुमुख: कलया कलेश
इक्ष्वाकुवंश अवतीर्य गुरोर्निदेशे ।
तिष्ठन् वनं सदयितानुज आविवेश
यस्मिन् विरुध्य दशकन्धर आर्तिमार्च्छत् ॥ २३ ॥
 
शब्दार्थ
अस्मत्—हम सब पर, ब्रह्मा से लेकर क्षुद्र चीटीं तक; प्रसाद—अहैतुकी कृपा; सुमुख:—अत्यन्त उन्मुख; कलया—अपने अंशों सहित; कलेश:—समस्त शक्तियों के स्वामी; इक्ष्वाकु—महाराज इक्ष्वाकु जो सूर्यवंशी थे; वंशे—कुल में; अवतीर्य—जन्म लेकर; गुरो:—पिता अथवा गुरु की; निदेशे—आज्ञा से; तिष्ठन्—स्थित होकर; वनम्—वन में; स-दयिता-अनुज:—अपनी पत्नी तथा अनुज सहित; आविवेश—प्रवेश किया; यस्मिन्—जिसको; विरुध्य—विरोध करके; दश-कन्धर:—दस सिरों वाले, रावण ने; आर्तिम्—महान् कष्ट; आर्च्छत्—प्राप्त किया ।.
 
अनुवाद
 
 इस ब्रह्माण्ड के समस्त जीवों पर अहैतुकी कृपा के कारण पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् अपने अंशों सहित महाराज इक्ष्वाकु के कुल में अपनी अन्तरंगा शक्ति, सीताजी, के स्वामी के रूप में प्रकट हुए। वे अपने पिता महाराज दशरथ की आज्ञा से वन गये और अपनी पत्नी तथा छोटे भाई के साथ कई वर्षों तक वहाँ रहे। अत्यन्त शक्तिशाली दस सिरों वाले रावण ने उनके प्रति कई वर्षों तक अपराध किया और जिससे अन्तत: वह विनष्ट हो गया।
 
तात्पर्य
 भगवान् श्री राम पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं और उनके भाई भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न उनके अंश हैं। चारों भाई विष्णुतत्त्व हैं। वे कभी भी सामान्य मानव प्राणी नहीं रहे। रामायण के अनेक अनैतिक और अज्ञानी टीकाकार भगवान् रामचन्द्रजी के छोटे भाइयों को सामान्य जीवात्माएँ बताते हैं। किन्तु ईश्वरी-विज्ञान (भगवत्तत्व) के सर्वाधिक प्रामाणिक शास्त्र, इस श्रीमद्भागवत, में यह स्पष्ट उल्लेख है कि उनके भाई उनके स्वांश थे। मूल रूप में भगवान् रामचन्द्र वासुदेव के अवतार हैं, लक्ष्मण संकर्षण के, भरत प्रद्युम्न के तथा शत्रुघ्न अनिरुद्ध के अवतार हैं, जो भगवान् के ही अंश हैं। लक्ष्मीजी सीता के रुप में भगवान् की अन्तरंगा शक्ति हैं; वे न तो सामान्य स्त्री हैं और न ही दुर्गा की बहिरंगा शक्ति की अवतार हैं। दुर्गा जी भगवान् की बहिरंगा शक्ति हैं और वे शिवजी की संगिनी हैं। जैसाकि भगवद्गीता (४.७) में कहा गया है, जब-जब धर्म पालन में कमी आती है तब-तब भगवान् प्रकट होते हैं। भगवान् रामचन्द्र भी ऐसी ही परिस्थितियों में प्रकट हुए; उनके साथ उनकी अंतरंगा शक्ति के ही अंश-रूप भ्राता और लक्ष्मीजी सीता देवी थीं।

भगवान् रामचन्द्र को उनके पिता, महाराज दशरथ, ने अत्यन्त अटपटी परिस्थितियों में वन जाने का आदेश दिया था। भगवान् ने, आदर्श पुत्र की भाँति, उनकी आज्ञा का पालन किया, यद्यपि उन्हें उस समय अयोध्या का राजा घोषित किया गया था। उनके छोटे भाई लक्ष्मण ने उनके साथ जाने की इच्छा व्यक्त की और उनकी शाश्वत पत्नी सीता ने भी वैसी ही इच्छा व्यक्त की। भगवान् ने इन दोनों का आग्रह स्वीकार किया और इन्हें साथ लेकर दण्डकारण्य वन में चौदह वर्षों तक रहने के लिए उन्होंने वन में प्रवेश किया। वन में रहते हुए राम तथा रावण में संघर्ष हुआ और रावण ने राम की पत्नी सीताजी का अपहरण कर लिया। इस संघर्ष का अन्त महान् शक्तिशाली रावण का उसके राज्य तथा परिवार समेत विनाश के साथ हुआ।

सीता जी ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी जी हैं, किन्तु वे किसी अन्य जीव के द्वारा भोग्या नहीं हैं। वे समस्त जीवों द्वारा, अपने पति रामचन्द्रजी के साथ पूजनीय हैं। रावण जैसा भौतिकतावादी व्यक्ति इस महान् सत्य को नहीं समझ पाता; उल्टे वह, राम से सीता देवी को छीनकर कष्टों का आह्वान करता है। जो भौतिकतावादी व्यक्ति ऐश्वर्य तथा सम्पत्ति के पीछे पड़े रहते हैं, वे रामायण से शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं कि परमेश्वर की श्रेष्ठता को स्वीकार किये बिना भगवान् की प्रकृति का अपहरण (शोषण) रावण की नीति है। रावण अत्यन्त समृद्ध था, यहाँ तक कि उसने अपनी राजधानी लंका को शुद्ध सोने से बनवाया था। चूँकि उसे भगवान् रामचन्द्र की श्रेष्ठता मान्य न थी और उसने उनकी पत्नी सीता का अपहरण किया था, फलत: वह मारा गया और उसके साथ उसका ऐश्वर्य तथा पराक्रम नष्ट हो गया।

भगवान् रामचन्द्र छहों पूर्ण ऐश्वर्यों से युक्त अवतार हैं, इसीलिए उन्हें इस श्लोक में कलेश: अर्थात् समस्त ऐश्वर्यों का स्वामी कहा गया है।

 
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