श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 7: विशिष्ट कार्यों के लिए निर्दिष्ट अवतार  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  2.7.28 
यद् वै व्रजे व्रजपशून् विषतोयपीतान्
पालांस्त्वजीवयदनुग्रहद‍ृष्टिवृष्टय‍ा ।
तच्छुद्धयेऽतिविषवीर्यविलोलजिह्व-
मुच्चाटयिष्यदुरगं विहरन् ह्रदिन्याम् ॥ २८ ॥
 
शब्दार्थ
यत्—जो; वै—निश्चय ही; व्रजे—वृन्दावन में; व्रज-पशून्—वहाँ के पशु; विष-तोय—विषाक्त जल; पीतान्—पीने वालों को; पालान्—ग्वालों को; तु—भी; अजीवयत्—जीवित किया; अनुग्रह-दृष्टि—कृपापूर्ण चितवन की; वृष्ट्या—वृष्टि से; तत्—वह; शुद्धये—शुद्धि के लिए; अति—अत्यधिक; विष-वीर्य—अत्यधिक प्रभावशाली विष; विलोल—लपलपाती; जिह्वम्—जीभ वाला; उच्चाटयिष्यत्—कठोर दण्ड देगा; उरगम्—सर्प को; विहरन्—विनोद में; ह्रदिन्याम्—नदी में ।.
 
अनुवाद
 
 और जब ग्वालों तथा उनके पशुओं ने यमुना नदी का विषैला जल पी लिया और जब भगवान् ने (अपने बचपन में) अपनी कृपादृष्टि से ही उन्हें जीवित कर दिया। तब यमुना नदी के जल को शुद्ध करने के लिए ही वे उसमें मानो खेल-खेल में कूद पड़े। उन्होंने विषैले कालिय नाग को दण्ड दिया जो अपनी लपलपाती जीभ से विष की लहरें निकाल रहा था। भला परमेश्वर के अतिरिक्त ऐसा महान् कार्य करने में और कौन समर्थ है?
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥