किन्तु यदि भगवान् की सेवा में निश्छल भाव से आत्मसमर्पण करने से परमेश्वर की किसी पर विशेष कृपा होती है, तो वह माया के दुर्लंघ्य सागर को पार कर सकता है और भगवान् को जान पाता है। किन्तु जिसे अन्त में कुत्तों तथा सियारों का भोजन बनना है, ऐसे इस शरीर के प्रति जो आसक्त हैं, वे ऐसा नहीं कर सकते।
तात्पर्य
भगवान् के निश्छल भक्त भगवान् की महिमा से परिचित होते हैं और वे इतना तो समझते ही हैं कि ईश्वर कितना महान् है और उनकी विविध शक्तियों का कितना विस्तार है। जो इस नश्वर शरीर के प्रति आसक्त रहते हैं, वे तत्त्व-ज्ञान के क्षेत्र में प्रविष्ट नहीं हो पाते हैं। यह सारा संसार, देहात्मबुद्धि की अवधारणा के कारण, तत्त्व ज्ञान से अपरिचित है। भौतिकतावादी व्यक्ति न केवल अपने भौतिक शरीर वरन् अपने बच्चों व सम्बन्धियों, जाति वालों, देशवासियों के शरीरों के कल्याण-कार्य में सदैव व्यस्त रहता है। ऐसे भौतिकतावादी व्यक्ति भले ही राजनैतिक, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण से परमार्थ के कई प्रकार के कार्य करते हों, किन्तु इनका यह सारा कार्य देहात्मबुद्धि की गलत धारणा से ऊपर नहीं उठ पाता। अत: जब तक मनुष्य देहात्मबुद्धि की भ्रांत धारणा से मुक्त नहीं हो लेता, उसे तत्त्व-ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती और इस तत्त्व-ज्ञान के बिना भौतिक सभ्यता की उन्नति की सारी चमक-दमक व्यर्थ है।
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