हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 8: राजा परीक्षित द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  2.8.11 
पुरुषावयवैर्लोका: सपाला: पूर्वकल्पिता: ।
लोकैरमुष्यावयवा: सपालैरिति शुश्रुम ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
पुरुष—विराट पुरुष; अवयवै:—शरीर के विभिन्न भागों से; लोका:—समस्त लोक; स-पाला:—अपने-अपने पालकों सहित; पूर्व—पहले; कल्पिता:—विवेचित; लोकै:—विभिन्न लोकों द्वारा; अमुष्य—उसके; अवयवा:—शरीर के विभिन्न अंग; स पालै:—पालकों सहित; इति—इस प्रकार; शुश्रुम—मैंने सुना है ।.
 
अनुवाद
 
 हे विद्वान ब्राह्मण, इसके पूर्व व्याख्या की गई थी कि ब्रह्माण्ड के समस्त लोक अपने-अपने लोकपालकों सहित विराट पुरुष के विराट शरीर के विभिन्न अंगों में ही स्थित हैं। मैंने भी यह सुना है कि विभिन्न लोकमंडल विराट पुरुष के विराट शरीर में स्थित माने जाते हैं। किन्तु उनकी वास्तविक स्थिति क्या है? कृपा करके मुझे समझाइये।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥