श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 8: राजा परीक्षित द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  2.8.12 
यावान् कल्पोविकल्पो वा यथा कालोऽनुमीयते ।
भूतभव्यभवच्छब्द आयुर्मानं च यत् सत: ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
यावान्—जिस रूप में; कल्प:—सृष्टि तथा प्रलय के बीच की अवधि; विकल्प:—गौण सृष्टि तथा प्रलय; वा—अथवा; यथा— और भी; काल:—समय; अनुमीयते—मापा जाता है; भूत—विगत; भव्य—भविष्य; भवत्—वर्तमान; शब्द:—शब्द; आयु:— जीवन अवधि, उम्र; मानम्—माप; च—भी; यत्—जो; सत:—समस्त लोकों के जीवों का ।.
 
अनुवाद
 
 कृपा करके सृष्टि तथा प्रलय के मध्य की अवधि (कल्प) तथा अन्य गौण सृष्टियों (विकल्प) एवं भूत, वर्तमान तथा भविष्य शब्द से सूचित होने वाले काल के विषय में भी मुझे बताएँ। साथ ही, ब्रह्माण्ड के विभिन्न लोकों के विभिन्न जीवों यथा देवों, मनुष्यों इत्यादि की आयु की अवधि के विषय में भी मुझे बताएँ।
 
तात्पर्य
 भूत, वर्तमान तथा भविष्य, ये काल के विभिन्न अंश हैं जिनसे इस ब्रह्माण्ड पर तथा इसकी सारी की सारी साज-सामग्री में से, जिसमें विभिन्न लोकों के प्राणी सम्मिलित हैं, जीवन की अवधि (आयु) सूचित होती है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥