यद् यत् परीक्षिदृषभ: पाण्डूनामनुपृच्छति ।
आनुपूर्व्येण तत्सर्वमाख्यातुमुपचक्रमे ॥ २९ ॥
शब्दार्थ
यत् यत्—जो जो; परीक्षित्—राजा; ऋषभ:—श्रेष्ठ; पाण्डूनाम्—पाण्डुवंश में; अनुपृच्छति—पूछते जाते; आनुपूर्व्येण—आदि से अन्त तक; तत्—वह सब; सर्वम्—पूर्णत:; आख्यातुम्—वर्णन करने के लिए; उपचक्रमे—अपने आपको तैयार किया ।.
अनुवाद
उन्होंने अपने आपको राजा परीक्षित द्वारा जो कुछ पूछा गया था उसका उत्तर देने के लिए तैयार किया। महाराज परीक्षित पाण्डुवंश में सर्वश्रेष्ठ थे, अत: वे उचित व्यक्ति से उचित प्रश्न पूछने में समर्थ हुए।
तात्पर्य
महाराज परीक्षित ने बातों को यथारुप में जानने के लिए अनेक प्रश्न पूछे जिनमें से कुछ अत्यन्त उत्सुकतापूर्ण थे, किन्तु गुरु के लिए आवश्यक नहीं कि वह उसी क्रम में उत्तर दे जिस क्रम में शिष्य प्रश्न पूछे। किन्तु शुकदेव गोस्वामी ने, अनुभवी शिक्षक होने के नाते, सभी प्रश्नों का उत्तर क्रमबद्ध रीति से दिया, जिस रूप में उन्हें ये शिष्य-परम्परा से प्राप्त हुए थे। उन्होंने सभी प्रश्नों के उत्तर दिए, किसी को छोड़ा नहीं।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के द्वितीय स्कंध के अन्तर्गत “राजा परीक्षित द्वारा पूछे गये प्रश्न” नामक अष्टम अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
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