श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 8: राजा परीक्षित द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  2.8.9 
अज: सृजति भूतानि भूतात्मा यदनुग्रहात् ।
दद‍ृशे येन तद्रूपं नाभिपद्मसमुद्भव: ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
अज:—किसी भौतिक साधन के बिना जन्म लेने वाला; सृजति—सृष्टि करता है; भूतानि—जीवों को; भूत-आत्मा—पदार्थ से बने शरीर वाले; यत्—जिसकी; अनुग्रहात्—कृपा से; ददृशे—देख सके; येन—जिसके द्वारा; तत्-रूपम्—उसके शरीर का स्वरूप; नाभि—नाभि से; पद्म—कमल का फूल; समुद्भव:—उत्पन्न ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्माजी जो किसी भौतिक स्रोत से नहीं, अपितु भगवान् की नाभि से प्रकट होने वाले कमल के फूल से उत्पन्न हुए है, वे उन सबके स्रष्टा हैं, जो इस संसार में जन्म लेते हैं। निस्सन्देह भगवत्कृपा से ही ब्रह्माजी भगवान् के स्वरूप को देख सके।
 
तात्पर्य
 ब्रह्मा प्रथम सजीव प्राणी हैं, जो अज: कहलाते हैं, क्योंकि उन्होंने भौतिक संसार में उत्पन्न किसी माता के गर्भ से जन्म नहीं लिया। वे भगवान् के कमल-पुष्प के शारीरिक विस्तार से सीधे प्रकट हुए थे। इस प्रकार यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि भगवान् तथा ब्रह्मा के शरीर एक ही तरह के हैं या भिन्न-भिन्न। इसे भी अच्छी तरह समझ लेना होगा। किन्तु एक बात जो निश्चित है, वह यह है कि ब्रह्माजी श्रीभगवान् की कृपा पर पूर्णत: आश्रित थे, क्योंकि जन्म के पश्चात् वे भगवान् की कृपा से ही जीवों को उत्पन्न कर सके थे और भगवान् का दर्शन कर सके थे। किन्तु उन्होंने भगवान् के जिस रूप को देखा था, वह ब्रह्मा जैसे गुण वाला था या नहीं, यह चकराने वाला प्रश्न है। इसीलिए महाराज परीक्षित इसके उत्तर को श्रील शुकदेव गोस्वामी से स्पष्ट कर लेना चाहते थे।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥