प्रवालवैदूर्यमृणालवर्चस: ।
परिस्फुरत्कुण्डलमौलिमालिन: ॥ १२ ॥
शब्दार्थ
प्रवाल—मूँगा; वैदूर्य—विशेष मणि; मृणाल—स्वर्गिक कमल; वर्चस:—किरणें; परिस्फुरत्—फूल रही है; कुण्डल—कान के आभूषण; मौलि—सिर; मालिन:—हारों से युक्त ।.
अनुवाद
उनमें से कुछ की आकृतियाँ मूँगे तथा हीरे की भाँति तेजस्वी हैं और वे अपने सिरों पर मालाएँ धारण किए हैं, जो कमल-पुष्प के समान खिली हुई हैं। कुछ ने कानों में कुण्डल पहन रखे हैं।
तात्पर्य
कुछ निवासी ऐसे हैं, जिन्हें सारूप्य मुक्ति प्राप्त है, अर्थात् उनके शारीरिक लक्षण श्रीभगवान् जैसे हैं। वैदूर्य मणि विशेषत: भगवान् के निमित्त है, किन्तु जिसे भगवान् का सारूप्य प्राप्त होता है, उसको ऐसा मणि धारण करने का विशेष सौभाग्य प्राप्त होता है।
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