अपने प्रिय दासों की ओर कृपा दृष्टि डालते हुए, मादक तथा आकर्षक दृष्टि वाले भगवान् अत्यधिक तुष्ट लगे। उनका मुस्काता मुख मोहक लाल रंग से सुशोभित था। वे पीले वस्त्र पहने थे और कानों में कुण्डल तथा सिर में मुकुट धारण किये हुए थे। उनके चार हाथ थे और उनका वक्षस्थल लक्ष्मीजी की रेखाकृतियों से चिह्नित था।
तात्पर्य
पद्म पुराण के उत्तर खंड में योगपीठ का अर्थात् उस स्थान का जहाँ भगवान् अपने नित्य भक्तों को दर्शन देते हैं, पूर्ण विवरण दिया हुआ है। उस योगपीठ में साक्षात् धर्म, ज्ञान, ऐश्वर्य तथा त्याग भगवान् के चरणकमलों पर आसीन हैं। वहाँ पर ऋक्, साम, यजु: तथा अथर्व—ये चारों वेद भगवान् को सलाह देने के लिए उपस्थित हैं। चण्ड आदि सोलहों शक्तियाँ वहाँ विद्यमान हैं। चण्ड तथा कुमुद प्रथम दो द्वारपाल हैं; बीच के द्वार पर भद्र तथा सुभद्र और अन्तिम द्वार पर जय तथा विजय हैं। कुमुद, कुमुदाक्ष, पुण्डरीक, वामन, शंकुकर्ण, सर्वनेत्र, सुमुख आदि अन्य द्वारपाल भी हैं। भगवान् का महल अच्छी तरह सजा हुआ तथा उपर्युक्त द्वारपालों द्वारा रक्षित है।
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