भगवान् अपने सिंहासन पर विराजमान थे और विभिन्न शक्तियों से—यथा चार, सोलह, पाँच तथा छ: प्राकृतिक ऐश्वर्यों के साथ अन्य छोटी एवं क्षणिक शक्तियों से घिरे हुए थे। किन्तु वे वास्तविक परमेश्वर थे और अपने धाम में आनन्द ले रहे थे।
तात्पर्य
भगवान् अपने छ: ऐश्वर्यों से युक्त होते हैं। विशेषत: वे सबसे धनी, सर्वशक्तिमान, सर्वाधिक प्रसिद्ध, सर्वाधिक सुन्दर, सर्वाधिक ज्ञानी तथा सबसे बड़े त्यागी होते हैं और उनकी चार भौतिक सर्जनात्मक शक्तियों के लिए प्रकृति, पुरुष, महत् तत्त्व के सिद्धान्त तथा अहंकार तो उनकी सेवा करते हैं। उनकी सेवा सोलह तत्त्व भी करते हैं—पाँच तत्त्व (क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर), पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ (नाक, कान, आँख, जीभ तथा त्वचा) तथा पाँच कर्मेन्द्रियाँ (हाथ, पाँव, पेट, मल त्याग इन्द्रियां मूत्र तथा जननेन्द्रियाँ) तथा मन। पाँच के अन्तर्गत रूप, स्वाद, गंध, शब्द तथा स्पर्श नामक पाँच तन्मात्राएँ आती हैं। ये पच्चीस शक्तियाँ सृष्टि करते समय भगवान् की सहायक बनती हैं और भगवान् की सेवा में प्रत्यक्ष रूप में लगी रहती हैं। लघु ऐश्वर्यों की संख्या आठ है (अस्थायी प्रभुत्व के लिए योगियों द्वारा प्राप्त की गई अष्ट सिद्धियाँ) और ये भी उनके वश में रहते हैं, किन्तु बिना प्रयास के इन समस्त शक्तियों से स्वाभाविक रुप से पूर्ण रहते हैं और इस कारण ही वे परमेश्वर हैं।
जीव कठिन तप तथा शारीरिक आसनों के द्वारा अस्थाई रुप से विलक्षण शक्ति प्राप्त कर सकता है, किन्तु इतने से वह परमेश्वर नहीं बन जाता। परमेश्वर अपनी शक्ति से ही किसी भी योगी से कहीं अधिक शक्तिमान है, किसी भी ज्ञानी की अपेक्षा अधिक ज्ञानवान, किसी भी धनी की तुलना में अत्यन्त धनवान, किसी भी सुन्दर जीव की अपेक्षा अनन्त रूपवान तथा किसी भी उपकारी की अपेक्षा अधिक दानी है। वे सर्वोपरि हैं; कोई न तो उनके समान है, न उनसे बढक़र। कोई कितना ही तप या योगिक प्रदर्शन क्यों न करे, उपर्युक्त किन्हीं भी शक्तियों में उनकी समता नहीं कर सकता। योगी उनकी कृपा पर आश्रित रहते हैं। अपनी असीम दानशीलता के कारण वे शक्ति के पीछे दौडऩे वाले योगियों को कुछ अस्थायी शक्तियाँ प्रदान कर सकते हैं, किन्तु अपने शुद्ध भक्तों को, जो भगवान् से उनकी दिव्य सेवा के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहते, वे प्रसन्न होकर शुद्ध सेवा के बदले में अपने आपको दे डालते हैं।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.