सर्वोच्च सिद्धिमयी पटुता है मेरे धाम का साक्षात् दर्शन और यह दर्शन तुम्हें मेरे आदेश के अनुसार कठिन तपस्या के प्रति तुम्हारी विनम्र प्रवृत्ति के कारण सम्भव हो सका है।
तात्पर्य
जीवन की सर्वोच्च सिद्धि की अवस्था भगवान् की कृपा के फलस्वरूप वास्तविक दर्शन द्वारा भगवान् को जानना है। इसकी प्राप्ति उस प्रत्येक व्यक्ति को हो सकती है, जो शास्त्रोक्त तथा प्रामाणिक आचार्यों द्वारा स्वीकृत मानदण्ड के अनुसार भक्तिमय सेवा का इच्छुक है। उदाहरणार्थ, भगवद्गीता समस्त महान् आचार्यों, यथा शंकर, रामानुज, मध्व, चैतन्य, विश्वनाथ, बलदेव, सिद्धान्त सरस्वती तथा अनेक अन्यों द्वारा स्वीकृत प्रामाणिक वैदिक ग्रन्थ है। उसी भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि मेरा ही ध्यान धरो, मेरे भक्त बनो, मेरी ही पूजा करो और सदैव मेरे ही समक्ष झुको। ऐसा करने से निस्सन्देह मनुष्य का भगवान् के धाम को जाना निश्चित है। अन्य स्थानों में भी इसी तरह कहा गया है कि अन्य सारे कार्यों को त्यागकर नि:संकोच भाव से भगवान् की शरण में जाओ। भगवान् ऐसे भक्त को समस्त सुरक्षा प्रदान करते हैं। सर्वोच्च सिद्ध-अवस्था प्राप्त करने के ये गुप्त गुर हैं। ब्रह्माजी ने इन्हीं नियमों का किसी श्रेष्ठता का विचार किए बिना पालन किया जिससे उन्हें भगवान् के धाम को सारी साज-सामग्री के साथ देखने तथा भगवान् के साक्षात्कार का सुयोग प्राप्त हो सका। न तो भगवान् के शरीर के तेज का निर्गुण दर्शन सर्वोच्च सिद्धावस्था है, न ही परमात्मा की अनुभूति की अवस्था। मनीषिता शब्द सार्थक है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने तथाकथित ज्ञान का झूठा या सही गर्व होता है, किन्तु भगवान् का कथन है कि ज्ञान की सर्वोच्च सिद्धावस्था उनको तथा उनके धाम को मायारहित होकर जान लेना है।
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