तथा कृपा करके मुझे यह भी बताएँ कि आप अपने से किस प्रकार से विभिन्न संयोगों के द्वारा संहार, उत्पत्ति, स्वीकृति तथा पालन की विविध शक्तियों को प्रकट करते हैं।
तात्पर्य
यह सारा संसार भगवान् की विभिन्न शक्तियों—अन्तरंगा, बहिरंगा तथा तटस्था शक्तियों—के प्रसार से साक्षात् भगवान् है, जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश सूर्यलोक की शक्ति का प्राकट्य है। ऐसी शक्ति भगवान् से तदाकार है और भिन्न भी है, जिस प्रकार सूर्य-प्रकाश सूर्यलोक से अभिन्न होकर भी भिन्न रहता है। ये शक्तियाँ विविध संयोगों के द्वारा भगवान् के संकेत पर कार्य करती हैं और ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जैसे प्रतिनिधि कर्ता भी भगवान् के विभिन्न अवतार हैं। दूसरे शब्दों में, भगवान् के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है फिर भी वे ऐसे प्रकट कार्यों से पृथक् है। यह किस प्रकार से होता है, इसकी व्याख्या बाद में की जाएगी।
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