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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  2.9.41 
तं नारद: प्रियतमो रिक्थादानामनुव्रत: ।
शुश्रूषमाण: शीलेन प्रश्रयेण दमेन च ॥ ४१ ॥
 
शब्दार्थ
तम्—उसको; नारद:—नारद मुनि; प्रियतम:—अत्यन्त प्रिय; रिक्थ-आदानाम्—उत्तराधिकारी पुत्रों का; अनुव्रत:—अत्यन्त आज्ञाकारी; शुश्रूषमाण:—सदैव सेवा के लिए उद्यत; शीलेन—सदाचरण से; प्रश्रयेण—विनयशीलता से; दमेन—इन्द्रिय-संयम से; —भी ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्मा के उत्तराधिकारी पुत्रों में सर्वाधिक प्रिय नारद अपने पिता की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं और अपने पिता के उपदेशों का अत्यन्त संयम, विनय तथा सौम्यता से पालन करते हैं।
 
 
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