श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 2: ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति  »  अध्याय 9: श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  2.9.44 
तस्मा इदं भागवतं पुराणं दशलक्षणम् ।
प्रोक्तं भगवता प्राह प्रीत: पुत्राय भूतकृत् ॥ ४४ ॥
 
शब्दार्थ
तस्मै—तत्पश्चात्; इदम्—यह; भागवतम्—भगवान् की महिमा, अथवा भगवद्-ज्ञान; पुराणम्—उपवेद; दश-लक्षणम्—दस विशिष्टताएँ; प्रोक्तम्—वर्णित; भगवता—भगवान् द्वारा; प्राह—कहा; प्रीत:—संतुष्ट होकर; पुत्राय—पुत्र से; भूत-कृत्— ब्रह्माण्ड के स्रष्टा ।.
 
अनुवाद
 
 तब जाकर पिता (ब्रह्मा) ने अपने पुत्र नारद को श्रीमद्भागवत नामक उपवेद पुराण कह सुनाया जिसका वर्णन श्रीभगवान् ने उनसे किया था और जो दस लक्षणों से युक्त है।
 
तात्पर्य
 यद्यपि चतु:श्लोकी श्रीमद्भागवत का उपदेश दिया गया था, किन्तु वह दस लक्षणों से सम्पन्न था, जिनकी व्याख्या अगले अध्याय में की जाएगी। चार श्लोकों में पहले यह बताया गया है कि सृष्टि के पूर्व भगवान् का अस्तित्व था, अत: श्रीमद्भागवत का शुभारम्भ वेदान्त सूक्ति जन्माद्यस्य से होता है। यद्यपि जन्माद्यस्य शुभारम्भ है, तो भी जिन चार श्लोकों में यह वर्णित है और जिनमें कहा गया है कि भगवान् सृष्टि से लेकर भगवद्धाम तक प्रत्येक वस्तु के मूल हैं, उसमें दस लक्षणों की व्याख्या हुई है। मनुष्य को गलत व्याख्या करके यह भूल नहीं करनी चाहिए कि भगवान् ने केवल चार श्लोक कहे थे, अत: शेष १७,९९४ श्लोक व्यर्थ हैं। इन दस लक्षणों की समुचित व्याख्या के लिए जैसाकि अगले अध्याय में बताया जाएगा, न जाने कितने श्लोकों की आवश्यकता होगी। ब्रह्मा ने नारद को पहले यह भी सलाह दी थी कि उन्होंने जो उपदेश दिया है उसका वे विस्तार करें। श्री चैतन्य महाप्रभु ने श्रील रूप गोस्वामी को संक्षेप में इसका उपदेश दिया, किन्तु शिष्य रूप गोस्वामी ने इसको अत्यधिक विस्तार दिया। इसके बाद इसी विषय को जीव गोस्वामी ने और फिर श्रीविश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर ने विस्तार दिया। हम इन्हीं अधिकारियों के पदचिह्नों पर चलने का प्रयास कर रहे हैं। अत: श्रीमद्भागवत न तो कोई साधारण उपन्यास है, न ही संसारी साहित्य। इसकी शक्ति अपार है, इसे अपनी बुद्धि के अनुसार चाहे जितना बढ़ाया जा सकता है। इससे भागवत का अन्त नहीं होगा। श्रीमद्भागवत भगवान् की वाणी का प्रतिनिधित्व करता है, अत: इसे चाहे चार श्लोकों में कहा जाय या चार अरब श्लोकों में, यह एक जैसा है ठीक वैसे ही जैसे भगवान् अणु से भी सूक्ष्म और अनन्त आकाश से भी विस्तृत हैं। श्रीमद्भागवत की शक्ति ऐसी ही है।
 
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