हे राजन्, तुम्हारे इस प्रश्न का कि यह ब्रह्माण्ड भगवान् के विराट रूप से किस प्रकार प्रकट हुआ तथा अन्य प्रश्नों का उत्तर मैं पूर्वोक्त चारों श्लोकों की व्याख्या के रूप में विस्तारपूर्वक दूँगा।
तात्पर्य
जैसाकि श्रीमद्भागवत के प्रारम्भ में कहा गया है यह महान् दिव्य साहित्य वैदिक ज्ञान रूपी वृक्ष का पक्व फल है, अत: सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर विश्व से सम्बन्धित जितने भी प्रश्न हो सकते हैं उन सबका उत्तर श्रीमद्भागवत में दिया गया है। ये उत्तर
व्याख्या करने वाले व्यक्ति की योग्यता पर निर्भर करते हैं। जैसाकि परम वक्ता श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा है श्रीमद्भागवत के दस विभागों में सारे प्रश्न समाहित हो जाते हैं और बुद्धिमान पुरुष उनका उचित उपयोग करके समुचित लाभ उठा सकेंगे।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के द्वितीय स्कन्ध के अन्तर्गत “श्रीभगवान् के वचन का उद्धरण देते हुए प्रश्नों के उत्तर” नामक नवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥