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श्लोक 3.1.1  |
श्रीशुक उवाच
एवमेतत्पुरा पृष्टो मैत्रेयो भगवान् किल ।
क्षत्त्रा वनं प्रविष्टेन त्यक्त्वा स्वगृहमृद्धिमत् ॥ १ ॥ |
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शब्दार्थ |
श्री-शुक: उवाच—श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा; एवम्—इस प्रकार; एतत्—यह; पुरा—पूर्व काल में; पृष्ट:—पूछने पर; मैत्रेय:—मैत्रेय ऋषि ने कहा; भगवान्—अनुग्रहकारी; किल—निश्चय ही; क्षत्त्रा—विदुर द्वारा; वनम्—जंगल में; प्रविष्टेन— प्रविष्ट हुए; त्यक्त्वा—त्याग कर; स्व-गृहम्—अपना घर; ऋद्धिमत्—समृद्ध ।. |
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अनुवाद |
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शुकदेव गोस्वामी ने कहा : अपना समृद्ध घर त्याग कर जंगल में प्रवेश करके महान् भक्त राजा विदुर ने अनुग्रहकारी मैत्रेय ऋषि से यह प्रश्न पूछा। |
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