श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  3.1.15 
क एनमत्रोपजुहाव जिह्मं
दास्या: सुतं यद्बलिनैव पुष्ट: ।
तस्मिन् प्रतीप: परकृत्य आस्ते
निर्वास्यतामाशु पुराच्छ्‌वसान: ॥ १५ ॥
 
शब्दार्थ
क:—कौन; एनम्—यह; अत्र—यहाँ; उपजुहाव—बुलाया; जिह्मम्—कुटिल; दास्या:—रखैल के; सुतम्—पुत्र को; यत्— जिसके; बलिना—भरण से; एव—निश्चय ही; पुष्ट:—बड़ा हुआ; तस्मिन्—उसको; प्रतीप:—शत्रुता; परकृत्य—शत्रु का हित; आस्ते—स्थित है; निर्वास्यताम्—बाहर निकालो; आशु—तुरन्त; पुरात्—महल से; श्वसान:—उसकी केवल साँस चलने दो ।.
 
अनुवाद
 
 “इस रखैल के पुत्र को यहाँ आने के लिए किसने कहा है? यह इतना कुटिल है कि जिनके बल पर यह बड़ा हुआ है उन्हीं के विरुद्ध शत्रु-हित में गुप्तचरी करता है। इसे तुरन्त इस महल से निकाल बाहर करो और इसकी केवल साँस भर चलने दो।”
 
तात्पर्य
 विवाह करते समय क्षत्रिय राजा अन्य कई युवतियों को विवाहित राजकुमारी के साथ लेते जाते थे। राजा की ये युवती-परिचारिकाएँ दासी कहलाती थीं। ये दासियाँ राजा के सहवास से पुत्र उत्पन्न करती थीं। ऐसे पुत्र दासीपुत्र कहलाते थे। इनका राज सिंहासन पर कोई अधिकार नहीं होता था, किन्तु उन्हें भरणपोषण तथा अन्य सुविधाएँ राजकुमारों के ही समान प्राप्त रहती थीं। विदुर ऐसी ही एक दासी के पुत्र थे, अतएव उनकी गणना क्षत्रियों में नहीं की जाती थी। राजा धृतराष्ट्र अपने इस छोटे दासीपुत्र भाई से अत्यधिक स्नेह करता था और विदुर उसके महान् मित्र तथा दार्शनिक सलाहकार थे। दुर्योधन यह भलीभाँति जानता था कि विदुर महात्मा तथा हितैषी हैं, किन्तु दुर्भाग्यवश उसने अपने निर्दोष चाचा को मर्माहत करने वाले कठोर शब्दों का प्रयोग किया था। दुर्योधन ने न केवल विदुर के जन्म पर कटाक्ष किया, अपितु उसे कृतघ्न भी कहा, क्योंकि वह युधिष्ठिर का समर्थक प्रतीत होता था जिसे दुर्योधन अपना शत्रु मानता था। उसने चाहा कि विदुर को तुरन्त महल से निकाल दिया जाय और उसकी सारी सम्पत्ति छीन ली जाय। यदि सम्भव होता तो वह उसके तब तक बेंत लगवाता जब तक उसके पास साँस के अतिरिक्त कुछ बाकी न बचता। उसने आरोप लगाया कि वह पाण्डवों का गुप्तचर है, क्योंकि उसने धृतराष्ट्र को उनके पक्ष में सलाह दी थी। राजमहल के जीवन तथा कूटनीति की बारीकियों की ऐसी स्थिति होती है कि विदुर जैसे निर्दोष व्यक्ति पर भी गर्हित आरोप लगाया जाता है और दण्डित किया जाता है। विदुर अपने भतीजे दुर्योधन के ऐसे अप्रत्याशित व्यवहार से आश्चर्यचकित थे और इसके पूर्व कि सचमुच कोई घटना घट जाए उन्होंने राजमहल को सदा के लिए त्यागने का निश्चय किया।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥