हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.1.2 
यद्वा अयं मन्त्रकृद्वो भगवानखिलेश्वर: ।
पौरवेन्द्रगृहं हित्वा प्रविवेशात्मसात्कृतम् ॥ २ ॥
 
शब्दार्थ
यत्—जो घर; वै—और क्या कहा जा सकता है; अयम्—श्रीकृष्ण; मन्त्र-कृत्—मंत्री; व:—तुम लोग; भगवान्—भगवान्; अखिल-ईश्वर:—सबके स्वामी; पौरवेन्द्र—दुर्योधन के; गृहम्—घर को; हित्वा—त्याग कर; प्रविवेश—प्रविष्ट हुए; आत्मसात्—अपना ही; कृतम्—स्वीकार किया हुआ ।.
 
अनुवाद
 
 पाण्डवों के रिहायशी मकान के विषय में और क्या कहा जा सकता है? सबों के स्वामी श्रीकृष्ण तुम लोगों के मंत्री बने। वे उस घर में इस तरह प्रवेश करते थे मानो वह उन्हीं का अपना घर हो और वे दुर्योधन के घर की ओर कोई ध्यान ही नहीं देते थे।
 
तात्पर्य
 गौडीय अचिन्त्य-भेदाभेद-तत्व दर्शन के अनुसार जो भी वस्तु भगवान् श्रीकृष्ण की इन्द्रियों को तुष्ट करती हो वह भी श्रीकृष्ण है। उदाहरणार्थ, श्रीवृन्दावन धाम श्रीकृष्ण से अभिन्न है (तद्धाम वृन्दावनम्), क्योंकि भगवान् वृन्दावन में अपनी अन्तरंगा शक्ति का दिव्य आनन्द भोगते हैं। इसी तरह पाण्डवों का घर भी भगवान् के लिए दिव्य आनन्द का स्रोत था। यहाँ इसका उल्लेख हुआ है कि भगवान् ने इस घर को अपने ही घर की तरह समझा। अतएव पाण्डवों का घर वृन्दावन के समान था और विदुर को उस दिव्य आनन्द वाले स्थान का परित्याग नहीं करना चाहिए था। अत: उनके द्वारा घर छोडऩे का कारण वास्तव में पारिवारिक अनबन नहीं थी, प्रत्युत विदुर ने इस अवसर का लाभ ऋषि मैत्रेय से मिलने और दिव्य ज्ञान की चर्चा करने के लिए उठाया। विदुर जैसे साधु पुरुष के लिए सांसारिक मामलों को लेकर उठने वाला कोई विघ्न महत्त्वहीन था। किन्तु कभी-कभी ऐसे विघ्न उच्चतर अनुभूति के लिए अनुकूल होते हैं, अतएव विदुर ने पारिवारिक अनबन का लाभ मैत्रेय ऋषि से भेंट करने में उठाया।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥