इस तरह जब वे भारतवर्ष की भूमि में समस्त तीर्थस्थलों का भ्रमण कर रहे थे तो वे प्रभास क्षेत्र गये। उस समय महाराज युधिष्ठिर सम्राट थे और वे सारे जगत को एक सैन्य शक्ति तथा एक ध्वजा के अन्तर्गत किये हुए थे।
तात्पर्य
पाँच हजार से अधिक वर्ष पूर्व जब सन्त विदुर तीर्थयात्री के रूप में पृथ्वी का भ्रमण कर रहे थे तो ‘इण्डिया’ भारतवर्ष के नाम से विख्यात था, जैसाकि आज भी है। विश्व इतिहास भूत काल के तीन हजार वर्षों से अधिक का क्रमबद्ध विवरण नहीं दे सकता, किन्तु उसके पूर्व सारा संसार महाराज युधिष्ठिर के ध्वज एवं सैन्य शक्ति के अधीन था और वे संसार के सम्राट (चक्रवर्ती राजा) थे। आज के समय में संयुक्त राष्ट्र में सैकड़ों हजारों ध्वज फहराते हैं, किन्तु विदुर के समय, भगवान् कृष्ण अर्थात् अजित की कृपा से, केवल एक ध्वज था। संसार के सारे राष्ट्र पुन: एक ध्वज के नीचे एक सत्ता के लिए अत्यन्त उत्सुक हैं, किन्तु इसके लिए उन्हें भगवान् कृष्ण की कृपा प्राप्त करनी होगी, क्योंकि केवल वे ही एक विश्वव्यापी राष्ट्र बनाने में सहायक बन सकते हैं।
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