तत्पश्चात् वे अत्यन्त धनवान प्रान्तों यथा सूरत, सौवीर और मत्स्य से होकर तथा कुरुजांगल नाम से विख्यात पश्चिमी भारत से होकर गुजरे। अन्त में वे यमुना के तट पर पहुँचे जहाँ उनकी भेंट कृष्ण के महान् भक्त उद्धव से हुई।
तात्पर्य
आधुनिक दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले तक का लगभग एक सौ वर्गमील का भूखण्ड जिसमें हरियाणा प्रदेश के गुडग़ाँव जिले का कुछ अंश सम्मिलित हैं इन्हें सारे भारत में तीर्थयात्रा के लिए सर्वोपरि स्थान माना जाता है। यह भूभाग पवित्र है, क्योंकि भगवान् कृष्ण ने इस भूभाग की कई बार यात्रा की थी। अपने आविर्भाव काल से अपने मामा कंस के वहाँ पैदा होकर वे वृन्दावन में अपने पालक पिता महाराज नन्द के यहाँ पले। आज भी वहाँ पर भगवान् के कई भक्त कृष्ण तथा उनकी बाल सहेलियों, गोपियों, की खोज में भाव-विभोर होकर रह रहे हैं। ऐसा नहीं है कि ऐसे भक्त उस भूभाग में कृष्ण का प्रत्यक्ष दर्शन करते हैं, किन्तु भक्त का उत्सुकतापूर्वक कृष्ण की खोज करते रहना उनके साक्षात् दर्शन करने के ही समान है। ऐसा कैसे है? इसकी व्याख्या तो नहीं की जा सकती है, किन्तु जो भगवान् के शुद्ध भक्त हैं उनके द्वारा ऐसा अनुभव किया जाता है। दार्शनिक रूप से मनुष्य यह समझ सकता है कि भगवान् कृष्ण तथा उनकी स्मृति परम स्तर पर होती है और शुद्ध ईशचेतना में वृन्दावन में उनकी खोज करने का विचार उनके साक्षात् दर्शन करने की अपेक्षा अपने में भक्त को अधिक आनन्द प्रदान करने वाला है। ऐसे भगवद्भक्त उनका दर्शन प्रतिक्षण करते हैं जिसकी पुष्टि ब्रह्म-संहिता (५.३८)में हुई है—
“जो लोग भगवान् श्यामसुन्दर (कृष्ण) से भावाविष्ट प्रेम करते हैं, वे भगवान् के प्रति प्रेम तथा अपनी भक्ति के कारण उन्हें सदैव अपने हृदयों में देखते हैं।” विदुर तथा उद्धव दोनों ही ऐसे उच्चस्थ भक्त थे, अतएव दोनों ही यमुना के तट पर आ पहँुचे और एक दूसरे से मिले।
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