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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  3.1.25 
स वासुदेवानुचरं प्रशान्तं
बृहस्पते: प्राक् तनयं प्रतीतम् ।
आलिङ्ग्‍य गाढं प्रणयेन भद्रं
स्वानामपृच्छद्भगवत्प्रजानाम् ॥ २५ ॥
 
शब्दार्थ
स:—वह, विदुर; वासुदेव—कृष्ण का; अनुचरम्—नित्य संगी; प्रशान्तम्—अत्यन्त शान्त एवं सौम्य; बृहस्पते:—देवताओं के विद्वान गुरु बृहस्पति का; प्राक्—पूर्वकाल में; तनयम्—पुत्र या शिष्य; प्रतीतम्—स्वीकार किया; आलिङ्ग्य—आलिगंन करके; गाढम्—गहराई से; प्रणयेन—प्रेम में; भद्रम्—शुभ; स्वानाम्—निजी; अपृच्छत्—पूछा; भगवत्—भगवान् के; प्रजानाम्—परिवार का ।.
 
अनुवाद
 
 तत्पश्चात् अत्यधिक प्रेम तथा अनुभूति के कारण विदुर ने भगवान् कृष्ण के नित्य संगी तथा बृहस्पति के पूर्व महान् शिष्य उद्धव का आलिंगन किया। तत्पश्चात् विदुर ने भगवान् कृष्ण के परिवार का समाचार पूछा।
 
तात्पर्य
 विदुर उद्धव से आयु में बड़े थे, पितृतुल्य थे, अतएव जब दोनों मिले तो उद्धव ने विदुर को शीश झुकाया और विदुर ने उद्धव का आलिंगन किया, क्योंकि उद्धव छोटे थे, अतएव पुत्रतुल्य थे। विदुर के भाई पाण्डु कृष्ण के फूफा थे और उद्धव कृष्ण के चचेरे भाई थे। अतएव सामाजिक प्रथा के अनुसार विदुर का सम्मान उद्धव द्वारा पिता के स्तर पर होना चाहिए था। उद्धव तर्कशास्त्र के महान् विद्वान थे और वे देवताओं के गुरु तथा परम विद्वान पुरोहित बृहस्पति के शिष्य के रूप में विख्यात थे। विदुर ने उद्धव से उनके सम्बन्धियों की कुशलता के विषय में पूछा, यद्यपि उन्हें ज्ञात था कि वे सब इस लोक में नहीं रहे। यह जिज्ञासा अजीब लगती है, किन्तु श्रील जीव गोस्वामी कहते है कि यह समाचार विदुर के लिए आघात था इसीलिए उन्होंने अतीव उत्कण्ठावश पुन: पूछा। उनकी यह जिज्ञासा मनोवैज्ञानिक ही थी, व्यावहारिक नहीं।
 
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