श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  3.1.28 
कच्चिद्वरूथाधिपतिर्यदूनां
प्रद्युम्न आस्ते सुखमङ्ग वीर: ।
यं रुक्‍मिणी भगवतोऽभिलेभे
आराध्य विप्रान् स्मरमादिसर्गे ॥ २८ ॥
 
शब्दार्थ
कच्चित्—क्या; वरूथ—सेना का; अधिपति:—नायक; यदूनाम्—यदुओं का; प्रद्युम्न:—कृष्ण का पुत्र प्रद्युम्न; आस्ते—है; सुखम्—सुखी; अङ्ग—हे उद्धव; वीर:—महान् योद्धा; यम्—जिसको; रुक्मिणी—कृष्ण की पत्नी, रुक्मिणी ने; भगवत:— भगवान् से; अभिलेभे—पुरस्कारस्वरूप प्राप्त किया; आराध्य—प्रसन्न करके; विप्रान्—ब्राह्मणों को; स्मरम्—कामदेव; आदि सर्गे—अपने पूर्व जन्म में ।.
 
अनुवाद
 
 हे उद्धव, मुझे बताओ कि यदुओं का सेनानायक प्रद्युम्न, जो पूर्वजन्म में कामदेव था, कैसा है? रुक्मिणी ने ब्राह्मणों को प्रसन्न करके उनकी कृपा से भगवान् कृष्ण से अपने पुत्र रुपमें उसे उत्पन्न किया था।
 
तात्पर्य
 श्रील जीव गोस्वामी के अनुसार स्मर (कामदेव) भगवान् कृष्ण के नित्यसंगियों में से है। इसकी व्याख्या उन्होंने अपने भाष्य कृष्ण सन्दर्भ में विस्तार से की है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥