श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  3.1.3 
राजोवाच
कुत्र क्षत्तुर्भगवता मैत्रेयेणास सङ्गम: ।
कदा वा सह संवाद एतद्वर्णय न: प्रभो ॥ ३ ॥
 
शब्दार्थ
राजा उवाच—राजा ने कहा; कुत्र—कहाँ; क्षत्तु:—विदुर के साथ; भगवता—तथा अनुग्रहकारी; मैत्रेयेण—मैत्रेय के साथ; आस—हुई थी; सङ्गम:—मिलन, भेंट; कदा—कब; वा—भी; सह—साथ; संवाद:—विचार-विमर्श; एतत्—यह; वर्णय— वर्णन कीजिये; न:—मुझसे; प्रभो—हे प्रभु ।.
 
अनुवाद
 
 राजा ने शुकदेव गोस्वामी से पूछा : सन्त विदुर तथा अनुग्रहकारी मैत्रेय मुनि के बीच कहाँ और कब यह भेंट हुई तथा विचार-विमर्श हुआ? हे प्रभु, कृपा करके यह कहकर मुझे कृतकृत्य करें।
 
तात्पर्य
 जिस तरह शौनक ऋषि ने सूत गोस्वामी से पूछा था और सूत गोस्वामी ने उत्तर दिया, ठीक उसी तरह श्रील शुकदेव गोस्वामी ने राजा परीक्षित की जिज्ञासाओं का उत्तर दिया। राजा इन दो महात्माओं के बीच सम्पन्न सार्थक विचार-विमर्श के विषय में जानने के लिए अत्यन्त उत्सुक था।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥