कच्चित्—क्या; शिवम्—ठीकठाक; देवक-भोज-पुत्र्या:—राजा देवक भोज की पुत्री का; विष्णु-प्रजाया:—भगवान् को जन्म देने वाली; इव—सदृश; देव-मातु:—देवताओं की माता (अदिति) का; या—जो; वै—निस्सन्देह; स्व-गर्भेण—अपने गर्भ से; दधार—धारण किया; देवम्—भगवान् को; त्रयी—वेद; यथा—जितना कि; यज्ञ-वितानम्—यज्ञ के प्रसार का; अर्थम्— उद्देश्य ।.
अनुवाद
जिस तरह सारे वेद याज्ञिक कार्यों के आगार हैं उसी तरह राजा देवक-भोज की पुत्री ने देवताओं की माता के ही सदृश भगवान् को अपने गर्भ में धारण किया। क्या वह (देवकी) कुशल से है?
तात्पर्य
सारे वेद दिव्य ज्ञान तथा आध्यात्मिक मूल्यों से परिपूर्ण हैं। इस तरह भगवान् कृष्ण की माता देवकी ने वेदों के साक्षात् अर्थ रूप में भगवान् को अपने गर्भ में धारण किया। वेदों में तथा भगवान् में कोई अन्तर नहीं है। वेदों का उद्देश्य भगवान् को समझना है और भगवान् साक्षात् वेद हैं। देवकी की तुलना अर्थपूर्ण वेदों से तथा भगवान् की तुलना उनके उद्देश्य से की गई है।
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