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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  3.1.34 
अपिस्विदास्ते भगवान् सुखं वो
य: सात्वतां कामदुघोऽनिरुद्ध: ।
यमामनन्ति स्म हि शब्दयोनिं
मनोमयं सत्त्वतुरीयतत्त्वम् ॥ ३४ ॥
 
शब्दार्थ
अपि—भी; स्वित्—क्या; आस्ते—है; भगवान्—भगवान्; सुखम्—समस्त सुख; व:—तुम्हारा; य:—जो; सात्वताम्—भक्तों की; काम-दुघ:—समस्त इच्छाओं का स्रोत; अनिरुद्ध:—स्वांश अनिरुद्ध; यम्—जिसको; आमनन्ति—स्वीकार करते हैं; स्म—प्राचीन काल से; हि—निश्चय ही; शब्द-योनिम्—ऋग्वेवेद का कारण; मन:-मयम्—मन का स्रष्टा; सत्त्व—दिव्य; तुरीय—चौथा विस्तार; तत्त्वम्—तत्व, सिद्धान्त ।.
 
अनुवाद
 
 क्या मैं पूछ सकता हूँ कि अनिरुद्ध कुशलतापूर्वक है? वह शुद्ध भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने वाला है और प्राचीन काल से ऋग्वेद का कारण, मन का स्रष्टा तथा विष्णु का चौथा स्वांश माना जाता रहा है।
 
तात्पर्य
 आदि चतुर्भुज (व्यूह) बलदेव के आदि अंश वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न तथा अनिरुद्ध हैं। ये सभी विष्णु-तत्त्व हैं। श्रीराम के अवतार में ये सारे के सारे अंश विशिष्ट लीलाओं के लिए प्रकट हुए। भगवान् राम आदि वासुदेव हैं और संकर्षण, प्रद्युम्न तथा अनिरुद्ध उनके भाई थे। अनिरुद्ध महाविष्णु के कारण भी हैं जिनके श्वास से ऋग्वेद प्रकट हुआ। मार्कण्डेय पुराण में इसकी सुन्दर ढंग से व्याख्या हुई है। भगवान् कृष्ण के अवतार में अनिरुद्ध उनके पुत्र रूप में उत्पन्न हुए। द्वारका में भगवान् कृष्ण आदि व्यूह के वासुदेव अंश हैं। आदि भगवान् कृष्ण गोलोक वृन्दावन कभी नहीं छोड़ते। समस्त स्वांश एक ही विष्णुतत्त्व हैं और उनकी शक्ति में कोई अन्तर नहीं है।
 
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