अपि—भी; स्व-दोर्भ्याम्—अपनी भुजाएँ; विजय—अर्जुन; अच्युता-भ्याम्—श्रीकृष्ण समेत; धर्मेण—धर्म द्वारा; धर्म:—राजा युधिष्ठिर; परिपाति—पालनपोषण करता है; सेतुम्—धर्म का सम्मान; दुर्योधन:—दुर्योधन; अतप्यत—ईर्ष्या करता था; यत्— जिसका; सभायाम्—राज दरबार; साम्राज्य—राजसी; लक्ष्म्या—ऐश्वर्य; विजय-अनुवृत्त्या—अर्जुन की सेवा द्वारा ।.
अनुवाद
अब मैं पूछना चाहूँगा कि महाराज युधिष्ठिर धार्मिक सिद्धान्तों के अनुसार तथा धर्मपथ के प्रति सम्मान सहित राज्य का पालन-पोषण कर तो रहे हैं? पहले तो दुर्योधन ईर्ष्या से जलता रहता था, क्योंकि युधिष्ठिर कृष्ण तथा अर्जुन रूपी दो बाहुओं के द्वारा रक्षित रहते थे जैसे वे उनकी अपनी ही भुजाएँ हों।
तात्पर्य
महाराज युधिष्ठिर धर्म के प्रतीक थे। जब वे भगवान् कृष्ण तथा अर्जुन की सहायता से अपने साम्राज्य पर शासन करते थे तो उनके साम्राज्य का ऐश्वर्य स्वर्ग के भी ऐश्वर्य की सभी कल्पनाओं को मात कर चुका था। उनकी असली बाहें तो भगवान् कृष्ण तथा अर्जुन थे। इस तरह वे हर एक के ऐश्वर्य से बहुत आगे थे। दुर्योधन इस ऐश्वर्य से ईर्ष्या करता था, अतएव उसने
युधिष्ठिर को संकट में डालने के लिए अनेक चालें चलीं और अन्त में कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ। कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद महाराज युधिष्ठिर एक बार फिर से अपने वैध साम्राज्य पर शासन कर सके तथा उन्होंने धर्म के प्रति सम्मान तथा आदर भाव की पुनर्स्थापना की। महाराज युधिष्ठिर जैसे पुण्यात्मा राजा द्वारा शासित साम्राज्य की यही शोभा है।
____________________________
All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥