श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  3.1.39 
यमावुतस्वित्तनयौ पृथाया:
पार्थैर्वृतौ पक्ष्मभिरक्षिणीव ।
रेमात उद्दाय मृधे स्वरिक्थं
परात्सुपर्णाविव वज्रिवक्त्रात् ॥ ३९ ॥
 
शब्दार्थ
यमौ—जुड़वाँ (नकुल तथा सहदेव); उतस्वित्—क्या; तनयौ—पुत्र; पृथाया:—पृथा के; पार्थै:—पृथा के पुत्रों द्वारा; वृतौ— संरक्षित; पक्ष्मभि:—पलकों द्वारा; अक्षिणी—आँखों के; इव—सदृश; रेमाते—असावधानीपूर्वक खेलते हुए; उद्दाय—छीन कर; मृधे—युद्ध में; स्व-रिक्थम्—अपनी सम्पत्ति; परात्—शत्रु दुर्योधन से; सुपर्णौ—विष्णु का वाहन गरुड़; इव—सदृश; वज्रि वक्त्रात्—इन्द्र के मुख से ।.
 
अनुवाद
 
 क्या अपने भाइयों के संरक्षण में रह रहे जुड़वाँ भाई कुशल पूर्वक हैं? जिस तरह आँख पलक द्वारा सदैव सुरक्षित रहती है उसी तरह वे पृथा पुत्रों द्वारा संरक्षित हैं जिन्होंने अपने शत्रु दुर्योधन के हाथों से अपना न्यायसंगत साम्राज्य उसी तरह छीन लिया है, जिस तरह गरुड़ ने वज्रधारी इन्द्र के मुख से अमृत छीन लिया था।
 
तात्पर्य
 स्वर्ग का राजा इन्द्र अपने हाथ में वज्र धारण करता है और अत्यन्त बलशाली है, किन्तु भगवान् विष्णु के वाहन गरुड़ ने उसके मुख से अमृत छीन लिया था। इसी तरह दुर्योधन स्वर्ग के राजा के ही समान बलशाली था फिर भी पृथापुत्र पाण्डव दुर्योधन से अपना साम्राज्य छीनने में सफल रहे। गरुड़ तथा पार्थगण दोनों ही लाड़ले भगवद्भक्त हैं, इसीलिए वे ऐसे प्रबल शत्रुओं का सामना कर सके।

विदुर की जिज्ञासा पाण्डवों के सबसे छोटे दो भाइयों नकुल तथा सहदेव के विषय में थी। ये जुड़वाँ भाई माद्री के पुत्र थे, जो अन्य पाण्डवों की विमाता थी। जब माद्री अपने पति महाराज पाण्डु के साथ प्रयाण कर गई तो कुन्ती ने उनका भार सँभाला था। यद्यपि ये सौतेले भाई थे, किन्तु नकुल तथा सहदेव अन्य तीन पाण्डवों अर्थात् युधिष्ठिर, भीम तथा अर्जुन के ही समान थे। ये पाँचों भाई विश्व में सगे भाईयों के रूप में विख्यात हैं। तीनों ज्येष्ठ पाण्डवों ने अपने छोटे भाइयों की उसी तरह देखरेख की जिस तरह आँख की रखवाली पलक करती है। विदुर यह जानने के लिए उत्सुक थे कि दुर्योधन के हाथों से अपना साम्राज्य जीत लेने के बाद पांडवों के छोटे भाई बड़े भाइयों के संरक्षण में सुखपूर्वक तो रह रहे हैं।

 
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