हे भद्रपुरुष, मैं तो एकमात्र उस (धृतराष्ट्र) के लिए शोक कर रहा हूँ जिसने अपने भाई की मृत्यु के बाद उसके प्रति विद्रोह किया। उसका निष्ठावान हितैषी होते हुए भी उसके द्वारा मैं अपने घर से निकाल दिया गया, क्योंकि उसने भी अपने पुत्रों के द्वारा अपनाए गये मार्ग का ही अनुसरण किया था।
तात्पर्य
विदुर ने अपने जेष्ठ भ्राता की कुशलता के बारे में नहीं पूछा, क्योंकि उसके कल्याण का कोई अवसर नहीं था, उसके अध:पतित होने का ही समाचार हो सकता था। विदुर धृतराष्ट्र के निष्ठावान हितैषी थे और उनके मन के भीतर उसके विषय में एक विचार था। उन्होंने शोक व्यक्त किया कि धृतराष्ट्र ने अपने मृत भ्राता पाण्डु के पुत्रों के विरुद्ध विद्रोह कर सकता था और यह की उसने अपने कुटिल पुत्रों के आदेश पर उन्हें ही (विदुर को) उनके घर से निकाल दिया। इन कार्यों के बावजूद विदुर कभी भी धृतराष्ट्र के शत्रु नहीं बने, प्रत्युत उसके हितैषी बने रहे, यहाँ तक कि धृतराष्ट्र के अन्तिम दिनों में विदुर ही उसके एकमात्र असली मित्र सिद्ध हुए। विदुर जैसे वैष्णव का आचरण ही ऐसा होता है—वह अपने शत्रुओं का भी भला सोचता है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.