(कृष्ण) भगवान् होते हुए भी तथा पीडि़तों के दुख को सदैव दूर करने की इच्छा रखते हुए भी, वे कुरुओं का वध करने से अपने को बचाते रहे, यद्यपि वे देख रहे थे कि उन लोगों ने सभी प्रकार के पाप किये हैं और यह भी देख रहे थे कि, अन्य राजा तीन प्रकार के मिथ्या गर्व के वश में होकर अपनी प्रबल सैन्य गतिविधियों से पृथ्वी को निरन्तर क्षुब्ध कर रहे हैं।
तात्पर्य
जैसाकि भगवद्गीता में घोषणा की गई है भगवान् इस मर्त्यलोक में दुष्टों का वध करने तथा पीडि़त श्रद्धावानों की रक्षा करने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रकट होते हैं। इस उद्देश्य के बावजूद भगवान् कृष्ण कौरवों द्वारा द्रौपदी के अपमान को तथा पाण्डवों के प्रति किये जा रहे अन्याय के साथ-साथ अपने अपमान को सहते रहे। यह प्रश्न उठाया जा सकता है, “उन्होंने अपनी उपस्थिति में ऐसे अन्यायों तथा अपमानों को क्यों सहा? उन्होंने कुरुओं को तुरन्त दण्ड क्यों नहीं दिया?” जब कौरवों द्वारा सबों की उपस्थिति में द्रौपदी को भरी सभा में नुग्न देखने के प्रयास में उन्हें अपमानित किया गया तो भगवान् ने उनके वस्त्र को असीमित रुप में बढ़ाकर उनकी रक्षा की। किन्तु उन्होंने अपमान करने वाले पक्ष को तुरन्त दण्ड नहीं दिया। इस चुप्पी का यह अर्थ नहीं होता कि उन्होंने कुरुओं के अपराधों को क्षमा कर दिया था। पृथ्वी पर ऐसे अनेक राजा थे, जो तीन प्रकार की सम्पत्तियों—धन, शिक्षा तथा अनुयायियों—के कारण गर्वित हो उठे थे और वे सैन्यबल की गतिविधियों से पृथ्वी को लगातार उद्विग्न बना रहे थे। भगवान् इस ताक में थे कि वे सभी कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में एकत्र हों तो उन सबों का एकसाथ सफाया कर दिया जाय जिससे उनका वध करने का उद्देश्य थोड़े में पूरा हो सके। ईशविहीन राजागण या राज्यों के प्रधान जब धन, शिक्षा तथा जनसंख्या वृद्धि से गर्वित हो उठते हैं, तो वे सैन्यबल का प्रदर्शन करते हैं और निर्दोषों को कष्ट देते हैं। जब भगवान् कृष्ण स्वयं उपस्थित थे तो संसार भर में ऐसे अनेक राजा थे, अत: भगवान् ने कुरुक्षेत्र युद्ध के लिए योजना तैयार की। अपने विश्वरूप के प्राकट्य में भगवान् ने वध करने के अपने उद्देश्य को इस प्रकार व्यक्त किया है, “मैं अवांछित जनसंख्या को कम करने के लिए क्रूर कालरूप में इस पृथ्वी पर स्वेच्छा से अवतरित हुआ हूँ। मैं तुम पाण्डवों के अतिरिक्त यहाँ पर एकत्रित सारे लोगों का सफाया कर डालूँगा। यह वध कार्य तुम्हारी भागीदारी की प्रतीक्षा नहीं करेगा। यह पहले से नियोजित है। सारे लोग मेरे द्वारा वध किये जाएँगे। यदि तुम युद्धभूमि में वीर की तरह प्रसिद्ध बनना चाहते हो और युद्ध में लूटी हुई सम्पत्ति का भोग करना चाहते हो तो हे सव्यसाची! तुम अविलम्ब इस वध के निमित्त बनकर इसका श्रेय प्राप्त करो। द्रोण, भीष्म, जयद्रथ, कर्ण तथा अन्य महान् योद्धा पहले ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। तुम चिन्ता मत करो। तुम युद्ध करो और महान् योद्धा के रूप में विख्यात बनो। (भगवद्गीता११.३२-३४) भगवान् सदैव चाहते रहते हैं कि उनका भक्त उनके द्वारा सम्पन्न किये जाने वाले किसी उपाख्यान का नायक बने। वे अपने भक्त तथा मित्र अर्जुन को कुरुक्षेत्र युद्ध के वीर के रूप में देखना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने संसार के सारे दुष्टों को एकत्र होने की प्रतीक्षा की। उनके प्रतीक्षा करने का यही कारण है, और कोई अन्य कारण नहीं है।
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