हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  3.1.5 
सूत उवाच
स एवमृषिवर्योऽयं पृष्टो राज्ञा परीक्षिता ।
प्रत्याह तं सुबहुवित्प्रीतात्मा श्रूयतामिति ॥ ५ ॥
 
शब्दार्थ
सूत: उवाच—श्री सूत गोस्वामी ने कहा; स:—वह; एवम्—इस प्रकार; ऋषि-वर्य:—महान् ऋषि; अयम्—शुककदेव गोस्वामी; पृष्ट:—पूछे जाने पर; राज्ञा—राजा; परीक्षिता—महाराज परीक्षित द्वारा; प्रति—से; आह—कहा; तम्—उस राजा को; सु-बहु-वित्—अत्यन्त अनुभवी; प्रीत-आत्मा—पूर्ण तुष्ट; श्रूयताम्—कृपया सुनें; इति—इस प्रकार ।.
 
अनुवाद
 
 श्री सूत गोस्वामी ने कहा : महर्षि शुकदेव गोस्वामी अत्यन्त अनुभवी थे और राजा से प्रसन्न थे। अत: राजा द्वारा प्रश्न किये जाने पर उन्होंने उससे कहा; “कृपया इस विषय को ध्यानपूर्वक सुनें।”
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥