श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 1: विदुर द्वारा पूछे गये प्रश्न  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.1.7 
यदा सभायां कुरुदेवदेव्या:
केशाभिमर्शं सुतकर्म गर्ह्यम् ।
न वारयामास नृप: स्‍नुषाया:
स्वास्रैर्हरन्त्या: कुचकुङ्कुमानि ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
यदा—जब; सभायाम्—सभा में; कुरु-देव-देव्या:—देवतुल्य युधिष्ठिर की पत्नी द्रौपदी का; केश-अभिमर्शम्—उसके बाल पकडऩे के अपमान; सुत-कर्म—अपने पुत्र द्वारा किया गया कार्य; गर्ह्यम्—निन्दनीय; न—नहीं; वारयाम् आस—मना किया; नृप:—राजा; स्नुषाया:—अपनी पुत्रबधू के; स्वास्रै:—उसके अश्रुओं से; हरन्त्या:—धोती हुई; कुच-कुङ्कुमानि—अपने वक्षस्थल के कुंकुम को ।.
 
अनुवाद
 
 (इस) राजा ने अपने पुत्र दु:शासन द्वारा देवतुल्य राजा युधिष्ठिर की पत्नी द्रौपदी के बाल खींचने के निन्दनीय कार्य के लिए मना नहीं किया, यद्यपि उसके अश्रुओं से उसके वक्षस्थल का कुंकुम तक धुल गया था।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥