हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 10: सृष्टि के विभाग  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  3.10.1 
विदुर उवाच
अन्तर्हिते भगवति ब्रह्मा लोकपितामह: ।
प्रजा: ससर्ज कतिधा दैहिकीर्मानसीर्विभु: ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
विदुर: उवाच—श्री विदुर ने कहा; अन्तर्हिते—अन्तर्धान होने पर; भगवति—भगवान् के; ब्रह्मा—प्रथम उत्पन्न प्राणी ने; लोक- पितामह:—समस्त लोकवासियों के दादा; प्रजा:—सन्तानें; ससर्ज—उत्पन्न किया; कतिधा:—कितनी; दैहिकी:—अपने शरीर से; मानसी:—अपने मन से; विभु:—महान् ।.
 
अनुवाद
 
 श्री विदुर ने कहा : हे महर्षि, कृपया मुझे बतायें कि लोकवासियों के पितामह ब्रह्मा ने अन्तर्धान हो जाने पर किस तरह से अपने शरीर तथा मन से जीवों के शरीरों को उत्पन्न किया?
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥