श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 10: सृष्टि के विभाग  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.10.10 
विदुर उवाच
यथात्थ बहुरूपस्य हरेरद्भुतकर्मण: ।
कालाख्यं लक्षणं ब्रह्मन् यथा वर्णय न: प्रभो ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
विदुर: उवाच—विदुर ने कहा; यथा—जिस तरह; आत्थ—आपने कहा है; बहु-रूपस्य—विभिन्न रूपों वाले; हरे:—भगवान् के; अद्भुत—विचित्र; कर्मण:—अभिनेता का; काल—समय; आख्यम्—नामक; लक्षणम्—लक्षण; ब्रह्मन्—हे विद्वान ब्राह्मण; यथा—यह जैसा है; वर्णय—कृपया वर्णन करें; न:—हमसे; प्रभो—हे प्रभु ।.
 
अनुवाद
 
 विदुर ने मैत्रेय से पूछा : हे प्रभु, हे परम विद्वान ऋषि, कृपा करके नित्यकाल का वर्णन करें जो अद्भुत अभिनेता परमेश्वर का दूसरा रूप है। नित्य काल के क्या लक्षण हैं? कृपा करके हमसे विस्तार से कहें।
 
तात्पर्य
 यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अणुओं से लेकर विराट ब्रह्माण्ड तक के चित्र-विचित्र जीवों का प्राकट्य है और यह सब परमेश्वर के काल रूप के नियंत्रण में हैं। नियंत्रक काल विशिष्ट जीवधारियों के अनुसार विभिन्न विस्तारों वाला है। परमाणु-लय के लिए एक काल है और विश्व-लय के लिए भी एक अलग काल है। मनुष्य के शरीर के लय का एक काल है और विश्व शरीर के लय का भी एक काल है। वृद्धि, विकास तथा परिणामी कर्म—ये सभी काल पर आश्रित हैं। विदुर विभिन्न भौतिक प्राकट्यों तथा उनके विलीन होने के कालों के विषय में विस्तार से जानना चाह रहे थे।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥