श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 10: सृष्टि के विभाग  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  3.10.13 
यथेदानीं तथाग्रे च पश्चादप्येतदीद‍ृशम् ॥ १३ ॥
 
शब्दार्थ
यथा—जिस तरह है; इदानीम्—इस समय; तथा—उसी तरह; अग्रे—प्रारम्भ में; च—तथा; पश्चात्—अन्त में; अपि—भी; एतत् ईदृशम्—वैसा ही रहता है ।.
 
अनुवाद
 
 यह विराट जगत जैसा अब है वैसा ही रहता है। यह भूतकाल में भी ऐसा ही था और भविष्य में इसी तरह रहेगा।
 
तात्पर्य
 जैसाकि भगवद्गीता (९.८) में कहा गया है—भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्— भौतिक जगत के शाश्वत प्राकट्य, पालन तथा संहार के लिए क्रमबद्ध व्यवस्थित कार्यक्रम हैं। जिस तरह यह अभी उत्पन्न किया गया है और बाद में नष्ट कर दिया जायेगा उसी तरह यह भूतकाल में था और कालक्रम में पुन: सृजित, पालित और विनष्ट होगा। अत: काल के क्रमबद्ध कार्यकलाप स्थायी और शाश्वत हैं और इन्हें मिथ्या नहीं कहा जा सकता। अभिव्यक्ति अस्थायी तथा आकस्मिक है, किन्तु मिथ्या नहीं है जैसाकि मायावादी दार्शनिक दावा करते हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥