नौ सृष्टियों में से पहली सृष्टि महत् तत्त्वसृष्टि अर्थात् भौतिक घटकों की समग्रता है, जिसमें परमेश्वर की उपस्थिति के कारण गुणों में परस्पर क्रिया होती है। द्वितीय सृष्टि में मिथ्या अहंकार उत्पन्न होता है, जिसमें से भौतिक घटक, भौतिक ज्ञान तथा भौतिक कार्यकलाप प्रकट होते हैं।
तात्पर्य
भौतिक सृष्टि के लिए परमेश्वर से जो पहला उद्भास होता है, वह महत्-तत्त्व कहलाता है। भौतिक गुणों की अन्योन्य क्रिया मिथ्या स्वरूप का कारण है या कि इस भाव का कि जीव भौतिक तत्त्वों से बना है। यह मिथ्या अहंकार आत्मा के साथ शरीर तथा मन की पहचान करने का कारण है। भौतिक संसाधन तथा कार्य करने की क्षमता एवं ज्ञान की उत्पत्ति सृष्टि के दूसरे चरण में होती है, अर्थात् महत्तत्त्व के बाद। ज्ञान सूचक है इन्द्रियों का, जो ज्ञान एवं इन्द्रियों के अधिष्ठाता देवों की साधन हैं। कर्म के अन्तर्गत कर्मेन्द्रियाँ तथा उनके अधिष्ठाता देव आते हैं। ये सब द्वितीय सृष्टि में उत्पन्न होते हैं।
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