श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 10: सृष्टि के विभाग  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  3.10.18 
षडिमे प्राकृता: सर्गा वैकृतानपि मे श‍ृणु ।
रजोभाजो भगवतो लीलेयं हरिमेधस: ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
षट्—छठी; इमे—ये सब; प्राकृता:—भौतिक शक्ति की; सर्गा:—सृष्टियाँ; वैकृतान्—ब्रह्मा द्वारा गौण सृष्टियाँ; अपि—भी; मे—मुझसे; शृणु—सुनो; रज:-भाज:—रजोगुण के अवतार (ब्रह्मा) का; भगवत:—अत्यन्त शक्तिशाली की; लीला—लीला; इयम्—यह; हरि—भगवान्; मेधस:—ऐसे मस्तिष्क वाले का ।.
 
अनुवाद
 
 उपर्युक्त समस्त सृष्टियाँ भगवान् की बहिरंगा शक्ति की प्राकृतिक सृष्टियाँ हैं। अब मुझसे उन ब्रह्माजी द्वारा की गई सृष्टियों के विषय में सुनो जो रजोगुण के अवतार हैं और सृष्टि के मामले में जिनका मस्तिष्क भगवान् जैसा ही है।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥